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चन्द्रहार (नाटक)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :222
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8394

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‘चन्द्रहार’ हिन्दी के अमर कथाकार प्रेमचन्द के सुप्रसिद्ध उपन्यास ‘ग़बन’ का ‘नाट्य–रूपांतर’ है

‘चन्द्रहार’ हिन्दी के अमर कथाकार प्रेमचन्द के सुप्रसिद्ध उपन्यास ‘ग़बन’ का ‘नाट्य–रूपांतर’ है। हिन्दी पाठकों के सुपरिचित एकांकी नाटककार श्री विष्णु प्रभाकर के मूल उपन्यास की कथावस्तु, पात्र और संवादों को सुरक्षित रखते हुए जालपा के आभूषण–प्रेम और रमानाथ के मनोवैज्ञानिक चरित्र–चित्रण की कहानी को बड़ी की कुशलता, कलात्मकता और सफलता से नाटक का परिधान पहनाया है। उपन्यासों को रंगमंच के लिए उपयोगी नाटकों में परिवर्तित करने की कला यूरोप और अन्य देशों में अत्यधिक प्रचलित होते हुए भी हिन्दी में यह प्रयत्न सम्भवत: पहला ही है। रूपांतरकार ने रंगमंच की आवश्यकताओं और विशेषताओं का प्रस्तुत नाटक में पूरा–पूरा ध्यान रखा है, फिर भी जहाँ तक पढ़कर आनन्द लेने का प्रश्न है, इसके रस प्रवाह में कोई बाधा नहीं आने पायी है।

चन्द्रहार

पात्र–परिचय

पुरुष


रमानाथ– साधारण हैसियत का युवक, जो शान में आ कर अपनी पत्नी के आगे अपने वैभव की झूठी डींग मारता
दयानाथ– रमानाथ के पिता
देवीदीन– कलकत्ते का खटिक, जिसके यहाँ रमानाथ शरण लेता है।
डाकिया, प्यादा, दरोगा, इन्सपेक्टर, डिप्टी, जज, सरकारी वकील, सफाई का वकील, पुलिस के सिपाही, रमानाथ का भाई, जनता आदि।

महिला

जालपा– रमानाथ की पत्नी
राधा, वासंती, शाहजादी– जालपा की सहेलियाँ।
जागेश्वरी– रमानाथ की माता
रतन– वकील साहब की पत्नी और जालपा की सखी।
जग्गो– देवीदीन की पत्नी
जोहरा– वेश्या
जालपा की माँ और अन्य स्त्रियाँ।

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