लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> धर्मरहस्य

धर्मरहस्य

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :131
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9559

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

13 पाठक हैं

समस्त जगत् का अखण्डत्व - यही श्रेष्ठतम धर्ममत है मैं अमुक हूँ - व्यक्तिविशेष - यह तो बहुत ही संकीर्ण भाव है, यथार्थ सच्चे 'अहम्' के लिए यह सत्य नहीं है।

समस्त जगत् का अखण्डत्व - यही श्रेष्ठतम धर्ममत है।

मैं अमुक हूँ - व्यक्तिविशेष - यह तो बहुत ही संकीर्ण भाव है, यथार्थ सच्चे 'अहम्' के लिए यह सत्य नहीं है।

मैं समष्टिस्वरूप हूँ - इस धारणा के ऊपर खड़े होइये - इस पुरुषोत्तम की उच्चतम अनुष्ठान-प्रणालियों की सहायता से उपासना कीजिये, कारण ईश्वर जड़ वस्तु नहीं हैं, वे चैतन्यस्वरूप हैं, आत्मस्वरूप हैं, और आत्मरूप से तथा सत्य-रूप से उनकी यथार्थ उपासना करनी होगी।

प्रस्तुत पुस्तक स्वामी विवेकानन्द के धर्म सम्बन्धी प्रसिद्ध व्याख्यानों का संग्रह है। इनमें धर्म के सार्वभौमिक स्वरूप के महत्व को अत्यन्त विशद रीति से पुरस्सर किया गया है तथा समस्त धर्मों के अन्तिम ध्येय - आत्मदर्शनलाभ के उपायों पर भी प्रकाश डाला गया है। स्वामीजी ने धर्म के व्यावहारिक स्वरूप की चर्चा करते हुए यह भी सिद्ध करने की चेष्टा की है कि धर्म द्वारा समाज में नवजीवन का किस प्रकार संचार हो सकता है। उन्होंने बड़े प्रबल तर्कों द्वारा यह आग्रह किया है कि वर्तमान युग में उसी धर्म की आवश्यकता है जो ''मनुष्य'' का निर्माण कर सके।



Next...

प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book