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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा

प्रिटोरिया जाते हुए


मैं डरबन में रहने वाले ईसाई हिन्दुस्तानियों के सम्पर्क में भी तुरन्त आ गया। वहाँ की अदालत में दुभाषिया मि. पॉल रोमन कैथोलिक थे। उनसे परिचय किया और प्रोटेस्टेंट मिशन के शिक्षक स्व. मि. सुभान गॉडपफ्रे से भी परिचित हुआ। इन्ही के पुत्र जेम्स गॉडफ्रे यहाँ दक्षिण अफ्रीका में भारतीय प्रतिनिधि मण्डल में पिछले साल आये थे। इन्हीं दिनों स्व. पारसी रुस्तम जी से परिचय हुआ और तभी स्व. आदमजी मियाँ खान के साथ जान पहचान हुई। ये सब भाई अभी कर काम के सिवा एक-दूसरे से मिलते न थे, लेकिन जैसा कि हम आगे चलकर देखेंगे, बाद में ये एक-दूसरे के काफी नजदीक आये।

मैं इस प्रकार जान-पहचान कर रहा था कि इतने में फर्म के वकील की तरफ से पत्र मिला कि मुकदमें कि तैयारी की जानी चाहिये और खुद अब्दुल्ला सेठ को प्रिटोरिया जाना चाहियें अथवा किसी को वहाँ भेजना चाहिये।

अब्दुल्ला सेठ ने वह पत्र मुझे पढ़ने को दिया और पूछा, 'आप प्रिटोरिया जायेगे?' मैंने कहा, 'मुझे मामला समझाइये, तभी कुछ कह सकूँगा। अभी तो मैं नहीं जानता कि मुझे करना होगा।' उन्होंने अपने मुनीमों से कहा कि वे मुझे मामला समझा दे।

मैंने देखा कि मुझे ककहरे से शुरू करना होगा। जब मैं जंजीबार में उतरा था तो वहाँ की अदालत का काम देखने गया था। एक पारसी वकील किसी गवाह के बयान ले रहे थे और जमा-नामे के सवाल पूछ रहे थे। मैं तो जमा-नामे में कुछ समझता ही न था। बही-खाता न तो मैंने हाईस्कूल में सीखा था और न विलायत में।

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