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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा

पत्नी की दृढ़ता


कस्तूरबाई पर रोग के तीन घातक हमले हुए और तीनों वह केवल घरेलू उपचार से बच गयी। उनमें पहली घटना उस समय घटी जब सत्याग्रह का युद्ध चल रहा था। उसे बार बार रक्तस्राव हुआ करता था। एक डॉक्टर मित्र में शल्यक्रिया करा लेने की सलाह दी थी। थोडी आनाकानी के बाद पत्नी ने शल्यक्रिया कराना स्वीकार किया। उसका शरीर बहुत क्षीण हो गया था। डॉक्टर ने बिना क्लोरोफार्म के शल्यक्रिया की। शल्यक्रिया के समय बहुत पीड़ा हो रही थी, पर जिस धीरज से कस्तूरबाई ने उसे सहन किया उससे मैं आश्चर्यचकित हो गया। शल्यक्रिया निर्विध्न पूरी हो गयी। डॉक्टर ने और उसकी पत्नी ने कस्तूरबाई की अच्छी सार-संभल की।

यह घटना डरबन में हुई थी। दो-तीन दिन के बाद डॉक्टर ने मुझे निश्चिन्त होकर जोहानिस्बर्ग जाने की अनुमति दे दी। मैं चला गया। कुछ ही दिन बाद खबर मिली कि कस्तूरबाई का शरीर बिल्कुल सुधर नहीं रहा है और वह बिछौना छोड़कर उठ-बैठ भी नहीं सकती। एक बार बेहोश भी हो चुकी थी। डॉक्टर जानते थे कि मुझ से पूछे बिना औषधि या अन्न के रूप ने कस्तूरबाई को शराब अथवा माँस नहीं दिया जा सकता। डॉक्टर ने मुझे जोहानिस्बर्ग में टेलिफोन किया, 'मैं आपकी पत्नी को माँस का शोरवा अथवा बीफ-टी देने की जरूरत समझता हूँ। मुझे इजाजत मिलनी चाहिये। '

मैंने उत्तर दिया, 'मैं इजाजत नहीं दे सकता। किन्तु कस्तूरबाई स्वतंत्र है। उससे पूछने जैसी स्थिति हो ते पूछिये और वह लेना चाहे तो जरूर दीजिये।'

'ऐसे मामलों में मैं बीमार से कुछ पूछना पसंद नहीं करता। स्वय आपको यहाँ आना जरूरी है। यदि आप मैं जो चाहूँ सो खिलाने की छूट मुझे न दे, तो मैं आपकी स्त्री के लिए जिम्मेदार नहीं।'

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