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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा

उजला पहलू


एक ओर समाज सेवा का वह काम हो रहा था, जिसका वर्णन मैंने पिछले प्रकरणों में किया है और दूसरी ओऱ लोगों के दुःखो की कहानियाँ लिखने का काम उत्तरोत्तर बढ़ते पैमाने पर हो रहा था। हजारों लोगों की कहानियाँ लिखी गयी। उनका कोई असर न हो, यह कैसी संभव था? जैसे जैसे मेरे पड़ाव पर लोगों की आमद रफ्त बढ़ती गयी वैसे वैसे निलहों का क्रोध बढ़ता गया, उनकी ओर सो मेरी जाँच को बन्द कराने के प्रयत्न बढ़ते गये।

एक दिन मुझे बिहार सरकार का पत्र मिला। उसका आशय इस प्रकार था, 'आपकी जाँच काफी लम्बे समय तक चल चुकी है और अब आपको उसे बन्द करके बिहार छोड देना चाहिये।' पत्र विनय पूर्वक लिखा गया था, पर उसका अर्थ स्पष्ट था। मैंने लिखा कि जाँच का काम तो अभी देर तक चलेगा और समाप्त होने पर भी जब तक लोगों के दुःख दूर न होगे, मेरा इरादा बिहार छोडने का जाने का नहीं है। मेरी जाँच बन्द कराने के लिए सरकार के पास एक समुचित उपाय यही था कि वह लोगों की शिकायतो को सच मान कर उन्हे दूर करे, अथवा शिकायतो को ध्यान में लेकर अपनी जाँच समिति नियुक्त करे। गवर्नर सर एडवर्ड गेट में मुझे बुलाया और कहा कि वे स्वयं जाँच समिति नियुक्त करना चाहते है। उन्होंने मुझे उसका सदस्य बनने के लिए आमंत्रित किया। समिति के दूसरे नाम देखने के बाद मैंने साथियो से सलाह की और इस शर्त के साथ सदस्य बनना कबूल किया कि मुझे अपने साथियो से सलाहमशविरा करने की स्वतंत्रता रहनी चाहिये और सरकार को समझ लेना चाहिये कि सदस्य बन जाने से मैं हिमायत करना छोड़ न दूँगा, तथा जाँच पूरी हो जाने पर यदि मुझे संतोष न हुआ तो किसानो का मार्गदर्शन करने की अपनी स्वतंत्रता को मैं हाथ से जाने न दूँगा।

सर एडवर्ड गेट ने इस शर्तो को उचित मानकर इन्हे मंजूर किया। स्व. सर फ्रेंक स्लाई समिति के अध्यक्ष नियुक्त किये गये थे। जाँच समिति ने किसानो की सारी शिकायतो को सही ठहराया और निलहे गोरो ने उनसे जो रकम अनुचित रीति से वसूल की थी, उसका कुछ अंश लौटाने और 'तीन कठिया' के कानून को रद्द करने की सिफारीश की।

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