लोगों की राय

उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

270 पाठक हैं

बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


‘‘पिछले वर्ष सेठजी के आदमी मोतीराम ने हमारे कपड़े के कारखाने को आग लगाकर भस्म कर दिया था और उससे हमको पाँच हजार से अधिक हानि हुई थी। इसपर भी गत वर्ष हमारी आय चालीस हजार के लगभग हुई थी।’’

‘‘आप कपड़े का कारखाना खोले हुए थे?’’

‘‘हाँ; एक पोल्ट्री फार्म, एक फर्नीचर की वर्कशॉप, एक आटा पीसने की चक्की, एक लकड़ी चीरने के लिए आरा मशीन है तथा एक कपड़ा छापने का कारखाना भी है।’’

‘‘तो फार्म कैसे हो गया? इसे तो ग्रामीण हस्तकला-गृह कहना चाहिए।’’

‘‘हाँ, ऐसा भी कहा जा सकता ह। वास्तव में भाई साहब तो खेती-बाड़ी को भी एक हस्तकला मात्र ही समझते हैं। यह एक ऐसी दस्तकारी है, जिसके लिए एक मजदूर को बहुत कम समय देना पड़ता है। वर्ष में चार-पाँच महीने से अधिक काम नहीं होता और दिन-भर में दो-चीन घंटे से अधिक काम नहीं करना पड़ता। ये दूसरी हस्तकलाएँ किसानों और मजदूरों के लिए, रिक्त समय में करने के लिए हैं।’’

‘‘यदि हस्तकला-गृह ही खोलना है, तो नगर में ही क्यों न खोला जाये?’’

‘‘इसलिए कि गाँव में रहने के लाभ भी प्राप्त हो सकें। खुली हवा, धूप और स्वच्छता बम्बई जैसे नगरों में नहीं मिल सकती। साथ ही खेती-बाड़ी, जो देश में एक अत्यावश्यक और उपयोगी काम है, उसको चालू रखने के लिए अन्य काम भी आवश्यक हैं कि उनमें संलग्न व्यक्तियों के अवकास को भरने के लिए अन्य काम भी वहीं खोल दिये जायें।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book