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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


इसपर सूसन ने कह दिया, ‘‘मैं इनसे कह रही हूँ कि ये सट्टे का काम छोड़कर, किसी देहात में चलकर फार्मिंग करने चले चलें; परन्तु इनको सन्देह है कि उससे कोई विशेष लाभ नहीं होगा।’’

‘‘लाभ तो ऐसे ही हो सकता है, जैसे मैंने कहा है। यदि कोई यह कहे कि सट्टे के व्यापार की भाँति इसमें एक तिनका भी तोड़े, लाखों की आय हो जाये, तो यह असम्भव है।’’

‘‘क्या हम देवगढ़ चलकर, स्वयं अपनी आँखों से, काम की गतिविधि देख सकते हैं?’’

‘‘यही ठीक होगा। किसी निश्चय पर पहुँचने से पूर्व, स्वयं जाकर देख लेना चाहिए। मैं समझता हूँ कि जमींदार को सफलता तो तब ही मिल सकती है, जब मजदूरों के साथ खेत में खड़े होकर काम देखें। वास्तव में किसान स्वयं एक मजदूर होता है। दस घंटे रोज काम करता है। पैसा लगाने से और मजदूरी का ठीक विधि से उपयोग करने पर, उसको लाभ होने लगता है। यह लाभ है तो उसकी अपनी मजदूरी का ही। यदि मजदूरी न हो लाभ भी नहीं हो सकता।’’

‘बिहारीलाल का पूर्ण वृत्तान्त किसी प्रकार भी सुन्दरलाल में उत्साह नहीं भर सका था। इसके विपरीत सूसन पर उसके वृत्तान्त ने भारी प्रभाव उत्पन्न कर दिया था। वास्तव में वह एक किसान की लड़की थी। उसके पिता के कई अंगूरों के उद्यान थे और वह उन अंगूरों से शराब बना, उसको शराब के कारखाने में बेचता था।

वहाँ भी उसका पिता अपना पूर्ण समय अंगूरों के उद्यान की देख-भाल में नहीं लगाता था। वर्ष का बहुत कम भाग बगीचे में व्यय होता था। शेष समय, घर के सब आदमी किसी-न-किसी काम में लगे रहते थे। औरतें प्रायः कपड़ा बुनती थीं। पुरुष चित्र खींचते थे और फर्नीचक बनाने का करते थे। इस प्रकार सूसन-परिवार गाँव में मर्यादा-सम्पन्न और धनवान था।

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