उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
अतः स्वाभाविक ही था कि बिहारीलाल का देहात का वर्णन उसकी समझ में आ गया। उसने कह दिया, ‘‘बिहारी भैया ! हम देवगढ़ जायेंगे। क्या तुम अपने भाई साहब के नाम हमें एक परिचय पत्र दे सकते हो?’’
‘‘अवश्य। अन्यथा आपको यदि एक-आध रात वहाँ रहना पड़ा, तो कहाँ ठहरोगे? वहाँ एक मन्दिर है और उसके साथ यात्रियों के रहने के लिए स्थान भी है, परन्तु वहाँ आपको आराम नहीं रहेगा।’’
सूसन ने तुरन्त अपना राइटिंग पैड निकालकर चिट्ठी लिखा ली। जब सुन्दरलाल बिहारी को कॉलेज होस्टल में छोड़ आया तो आते ही उसने कहा, ‘‘सूसन डियर ! मुझको इस काम में कुछ भी तत्त्व प्रतीत नहीं होता।’’
‘‘यह इस कारण कि आपने इस ढँग के काम को कभी किया नहीं। आप उस प्राणी की भाँति हैं, जो सागर की नीचे की तह में रहता है। उसको सागर के बाहर खुली हवा में लाकर रखा जाये, तो वह जीने में कठिनाई अनभव करने लगता है।
‘‘परन्तु आप विश्वास रखें कि एक बार आपको उस स्वतन्त्र, स्वच्छन्द वातावरण में रहने का स्वभाव पड़ा, तो फिर आपको बम्बई से घृणा हो जायेगी। साथ ही यहाँ की भाँति बेकार, गाड़ी लेकर इधर-उधर घूमना अखरने लगेगा।’’
कई दिन के वाद-विवाद के पश्चात् यह निश्चित हो गया कि वे देवगढ़ जाएँगे और वहाँ जाकर अन्तिम निर्णय करेंगे।
बिहारीलाल ने उसी दिन, जब वह सूसन को परिचय-पत्र देकर आया था, अपने भाई को लिख दिया था कि सूसन और सुन्दरलाल कौन हैं। साथ ही उसने लिखा था कि वे उनका फार्म देखना चाहते हैं।’’
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