उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
देवगढ़ से फकीरचन्द का पत्र आया कि वे आ सकते हैं। वह पत्र बिहारीलाल ने सूसन को दिया और इसके बाद उसका वहाँ जाना निश्चित हो गया। सुन्दरलाल, सूसन, बेबी मोहन और एक नौकर, ये चार व्यक्ति जा रहे थे। सूसन ने जाने से पूर्व शकुन्तला से मिलना आवश्यक समझा। शकुन्तला को अभी तक यह नहीं बताया गया था कि तिजोरी में से उसके आभूषण और रुपयों के, उसकी सास द्वारा चुराने जाने का प्रमाण मिल चुका है। सूसन का विचार था कि यदि उसको उसकी वस्तुयें मिलनी ही नहीं, तो फिर उनके मिल जाने के विषय में बताया ठीक नहीं। इस कारण वह इस विषय पर चुप थी।
सूसन ने शकुन्तला और ललिता से मिलकर जब यह बताया कि वे देवगढ़ में कोई भूमि लेकर फार्मिंग करने का विचार रखते हैं, तो दोनों बहिनों ने, उनके इसमें सफल होने में अपना सन्देह प्रकट किया। इसपर सूसन ने कहा, ‘‘देखो शकुन्तला बहिन ! यदि मुझे वह स्थान पसन्द आया, तो मैं अकेली ही वहाँ पर रहकर, फार्म बनाने का यत्न करूँगी।’’
इससे तो शकुन्तला और ललिता उसका मुख देखती रह गईं। इसपर ललिता ने पूछा, ‘‘तो क्या जीजाजी से कोई झगड़ा हो गया है?’’
‘‘झगड़ा तो नहीं हुआ, परन्तु मैं देखना चाहती हूँ कि उनको मेरे प्रति कितना प्रेम है। मैं बम्बई में सुख अनुभव नहीं कर रही। देखती हूँ कि वे मेरे सुख के लिए बम्बई छोड़ने के लिए तैयार भी हैं अथवा नहीं? वैसे को हमारे पास इतना है कि हम अब और पैसा कमाये बिना जीवन यापन कर सकते हैं।’’
‘‘सूसन बहिन !’’ ललिता ने कह दिया, ‘‘मुझे तो तुम्हारे इस विचार पर प्रसन्नता ही हुई है। यदि तुम देवगढ़ मे पहुँच गईं, तब तो तुम मेरी पड़ोसिन हो जाओगी और जीजाजी का शकुन्तला बहिन से सम्पर्क बन जाना स्वाभाविक ही है।’’
सूसन हँस पड़ी और कहने लगी, ‘‘तो तुमको विश्वास है कि तुम्हारा विवाह वहाँ ही होगा?’’
‘‘विश्वास ही नहीं प्रत्युत यह बात निश्चित है।’’
‘‘क्या वहाँ से कोई समाचार आया है?’’
‘‘समाचार तो नहीं, परन्तु मेरा मन कहता है कि वह घर मेरा है।’’
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