उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
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सूर्यकान्त में बहुत-कुछ परिवर्तन आ चुका था। इसपर भी उसके मस्तिष्क में से अभी तक श्रमिकों के विदोहन का भाव गया नहीं था। कहीं भी मजदूरों से काम करा कर, लाभ करने वाले को वह शोषणकर्त्ता ही मानता था। इसपर भी वह देख रहा था कि फकीरचन्द गाँव में एक बड़ी भारी शक्ति बनता जाता है और वह भी उससे बहुत से काम करा सकता है।
एक दिन वह आकर कहने लगा, ‘‘फकीरचन्द जी ! गिरधारी के मकान के पीछे, नीची जगह पर पानी एकत्रित हो जाने से मच्छर एकत्रित हो जाता हैं और फिर उससे मलेरिया फैसला है। इसका कोई उपाय हो जाये तो बहुत ही अच्छा हो।’’
सूर्यकान्त के ऐसा कहने पर फकीरचन्द ने यह समझा कि सूर्यकान्त समझता है कि गाँव वालों के स्वास्थ्य का उत्तरदायित्व भी उस पर होना चाहिए। फकीरचन्द ने इस विचार की उपेक्षा नहीं की। उसने एक-दो दिन तक विचार कर एक योजना बना डाली। एक दिन उसके कहने पर चौधरी रामहरष ने गाँव के जमींदारों और मजदूरों की सभा बुलाई। फकीरचन्द वहाँ पहुँचकर सबको समझाने लगा कि उस गड्ढे के कारण गाँव के बहुत से लोग प्रतिवर्ष बीमार पड़ जाते हैं। यदि वह गड्ढा भर दिया जाये, तो वहाँ पानी एकत्रित नहीं हो सकेगा और मलेरिया ज्वर नहीं फैलेगा।
सबने उसकी योजना को स्वीकार किया, परन्तु गड्ढा भरने के खर्चे का प्रश्न था। इस प्रश्न पर फकीरचन्द ने कहा, ‘‘यह काम सब की भलाई का है। इस कारण हम सबको, इसके लिए यत्न करना चाहिए। मेरा विचार है कि जितने भी लोग गाँव में मजदूरी कर सकते हैं, वे सप्ताह में एक दिन इस काम को किया करें। उस दिन सब काम करने वालों का खाना मेरे घर पर होगा। साथ ही गाँव के पानी को गाँव से दूर ले जाकर डालने का प्रश्न है। उसके लिए गाँव में नालियाँ बननी चाहिएँ। उनपर सीमेन्ट और ईटें लगेंगी वह हम, भूमिपति, थोड़ा-थोड़ा चन्दा डालकर खरीद देंगे।’’
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