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मनोरमा (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :283
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8534

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‘मनोरमा’ प्रेमचंद का सामाजिक उपन्यास है।


वज्रधर– जाकर करोगे ही क्या? जो कुछ होना था, हो चुका; अब जाना व्यर्थ है।

चक्रधर– कम-से-कम अहल्या का पता तो लगाना ही होगा।

वज्रधर– यह भी व्यर्थ है। पहले तो उसका पता लगाना ही मुश्किल है, और लग भी गया, तो तुम्हारा अब उससे क्या सम्बन्ध। अब वह मुसलमानों के साथ रह चुकी तो कौन हिन्दू उसे पूछेगा?

चक्रधर– इसीलिए तो मेरा जाना और भी जरूरी है।

वज्रधर– ऐसी बहू के लिए हमारे घर में स्थान नहीं है।

चक्रधर ने निश्चयात्मक भाव से कहा– वह आपके घर में न आयेगी।

वज्रधर ने भी उतने ही निर्दय शब्द से उत्तर दिया– अगर तुम्हारा खयाल हो कि पुत्र-स्नेह के वश होकर मैं उसी अंगीकार कर लूंगा, तो तुम्हारी भूल है। अहल्या कुल-देवी नहीं हो सकती, चाहे इसके लिए मुझे पुत्र-वियोग ही सहना पड़े।

चक्रधर पीछे घूमे ही थे कि निर्मला ने उसका हाथ पकड़ लिया और स्नेह पूर्ण तिरस्कार करती हुई बोली– बच्चा, तुमसे ऐसी आशा न थी। अब भी हमारा कहना मानो, हमारे कुल के मुंह में कालिख न लगाओ।

चक्रधर ने हाथ छुड़ाकर कहा– मैंने आपकी आज्ञा कभी भंग नहीं की लेकिन इस समय मैं मजबूर हूं,

वज्रधर– यह तुम्हारा अन्तिम निश्चय है?

चक्रधर– जी हां, अन्तिम!

यह कहते हुए चक्रधर बाहर निकल आये और कुछ कपड़े साथ लेकर स्टेशन की ओर चल दिये।

चक्रधर आगरे पहुंचे तो सवेरा हो गया था। एक क्षण तक वह खड़े सोचते रहे, कहां जाऊं? बाबू यशोदानन्दन के घर जाना व्यर्थ था। अन्त में उन्होंने ख्वाजा महमूद के घर चलना निश्चय किया।

ख्वाजा साहब के द्वार पर पहुंचे, तो देखा कि हजारों आदमी एक लाश को घेरे खड़े हैं और उसे कब्रिस्तान ले चलने की तैयारी हो रही है। चक्रधर तुरंत तांगे उतर पड़े और लाश के पास जाकर खड़े हो गये। कहीं ख्वाजा साहब तो नहीं कत्ल कर दिये गए। वह किसी से पूछने ही जाते ही थे कि सहसा ख्वाजा साहब ने आकर उनका हाथ पकड़ लिया और आंखों में आंसू भरकर बोले– खूब आये बेटा, तुम्हें आंखें ढूंढ़ रही थीं, जानते हो वह किसकी लाश है? यह मेरा इकलौता बेटा है, जिस पर जिन्दगी की सारी उम्मीदें कायम थीं। लेकिन खुदा जानता है, उसकी मौत पर मेरी आंखों से एक बूंद आंसू भी न निकला। उसने वह खेल किया, जो इन्सानियत के दरजे से गिरा हुआ था। तुम्हें अहल्या के बारे में तो खबर मिली होगी?

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