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धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार

अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

दूसरे बेटे ने सोचा, इन बीजों को कहां रखे रहूंगा। कम बढ़ हो जाए, कुछ गड़बड़ हो जाए, इन्हें बेच दूं। जब बाप लौटेगा। फिर खरीदकर एक बोरा बीज दे देंगे। कौन पहचानेगा कि वही बीज हैं? बीजों में कोई नाम लिखा है, कोई सील लगी है? कौन झंझट सम्हालने की करेगा। उसने बाजार में बीज बेच दिए और रुपए लाकर तिजोड़ी में रख दिए। जब बाप आएगा, बीज खरीदकर वापस लौटा दूंगा।

तीसरे लड़के ने कहा, बीज सम्हालने को बाप ने दिए हैं। बीज के सम्हालने का एक ही रास्ता हो सकता है कि बीज को बो दिया जाए। इनमें फूल आ जाएंगे। फिर नए बीज आ जाएंगे। उसने बीज बो दिए। सम्हालकर रखने का पागलपन क्या। इनका फायदा भी ले लो, इनके फूलों की सुगंध भी ले लो। उसने बीज बो दिए, मौसमी बीज थे। चार महीने भी नहीं बीत पाए, बगिया फूलों से भर गयी। सारा गांव प्रशंसा करने लगा। जब बाप तीन साल बाद लौटा तो कोसों तक, मीलों तक महल के आसपास की भूमि फूलों से भरी थी।

बाप ने आकर पूछा अपने बेटों को--बड़े को कि बीज कहां हैं? उसने तिजोड़ी खोली, वहां से राख और बदबू क्योंकि सब बीज सड़ गए। उसने कहा, यह रखे हैं जो आप दे गए थे। बाप ने कहा, पागल, ये फूलों के बीज थे और इनसे बदबू आ रही है। कौन है जिम्मेवार इस बात के लिए? पहला बेटा हार गया। दूसरे बेटे से कहा, बीज? उसने कहा, मैं अभी जाता हूं। रुपए निकाले, बाजार से खरीद लाता हूं। बाप ने कहा था, बीज मैंने तुझे सम्हालने को दिए थे, बेचने को नहीं। बेचने को नहीं दिए थे बीज, सम्हालने को दिए थे? दूसरा लड़का हार गया। क्योंकि उसे सम्हालने को दिया गया, उसे हम बेच दें।

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