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जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

जगन्नाथ मिश्रा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9688

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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी

 ''न.. न. हीं.. नहीं, मैंने कोई सूचना नहीं दी।'' सेठ ने हकला कर कहा। उसके मन में छिपा चोर कांप गया था।

''आप झूठ बोलते हैं, आपने पुलिस को सूचना दी है और इस का पता आजाद को हो गया है।''

यद्यपि यह तिवारी ने अटकलपच्चू से ही कह दिया था किन्तु वास्तव में बात ठीक ही थी। सेठ मक्कारी कर रहा था। उसने पुलिस से कह दिया था कि आज दोपहर को आजाद दल के काम बात सुनकर वह प्राणों के भय से कांप उठा था। उसके सम्मुख पिस्तौल लिए हुए आजाद का चित्र घूम गया।

तिवारी ने समझ लिया, उसका निशाना अचूक है। अब काम होने में कोई देर नहीं। उसने अपने स्वर को तनिक नम्र बनाते हुए कहा, ''सेठ जी! वैसे तो आप आजाद के स्वभाव को बहुत अच्छी तरह से जानते ही हैं कि वह धोखा देने वाले को कभी क्षमा नहीं कर सकते किन्तु मैंने उन्हें समझा बुझाकर सब ठीक कर लिया है।''

''वह क्या?''

''यह तो आपको शायद मालूम ही है कि आजाद अपने दल का संगठन फिर से करना चाहते हैं किन्तु उनके पास खाने के लिए और किराये के लिए भी पैसे नहीं हैं।''

''हां, यह तो ठीक ही है।''

'आपके पास दल के आठ हजार रुपये जमा हैं। आप इस समय केवल चार हज़ार ही दे दीजिए। मैं अभी 12 बजे की गाड़ी से आजाद को यहां से कहीं बाहर भेज दूंगा। बस आपके ऊपर से भारी बला टल जायगी।''

''किन्तु इस समय तो मेरे पास रुपये नही हैं।''

''यह आप जानें। मैंने तो बड़ी मुश्किल से ही आजाद को इस वात पर राजी किया है। नहीं तो वह अभी पुलिस को सूचना देने का आपको मजा चखाने यहां पर आ रहे वे। अगर आपने रुपये नहीं दिये तो आपके हक में कुछ अच्छा नहीं होगा।''

आजाद के यहां आने की बात सुनकर सेठ फिर घबरा उठा। उसने कुछ दे-दिलाकर तिवारी को यहां से टाल देना ही उचित समझा किन्तु वह था बडा काइयां आदमी। इस घबराहट में भी अपनी चालाकी से नहीं चूका। काफी तर्क-वितर्क के बाद ढाई हजार रुपये दिये किन्तु रसीद पूरे आठ हजार की लिखा ली।

उसने सोचा, ''अगर कभी आजाद फिर रुपया मांगने आये तो वह कह देगा कि मैं तिवारी को पूरा रुपया दे चुका हूं।''

सेठ खुश था, चलो ढाई हज़ार में ही बला टली और जान बच गई। तिवारी को खुशी थी, जो भी हाथ पडा, वही ठीक है। सेठ यह समझ रहा था, मैंने तिवारी को ठग लिया।

तिवारी सोच रहा था, 'यह खूब चक्कर में आया।'

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