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प्रेमचन्द की कहानियाँ 26

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9787

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छब्बीसवाँ भाग


मैंने आंसू पोंछने के खयाल से अपना फाउण्टेनपेन उसके हाथ में रख दिया। बच्चे को जैसे सारे जमाने की दौलत मिल गई। उसकी सारी इंद्रियां इस नई समस्या को हल करने में लग गई। एकाएक दरवाजा हवा से खुद-ब-खुद बन्द हो गया। पट की आवाज बच्चे के कानों में आई। उसने दरवाजे की तरफ देखा। उसकी वह व्यस्तता तत्क्षण लुप्त हो गई। उसने फाउण्टेनपेन को फेंक दिया और रोता हुआ दरवाजे की तरफ चला क्योंकि दरवाजा बन्द हो गया था।

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2. बडी बहन

एक दिन मौजा शिवगंज में शाम के वक्त कई औरतें एक नीम के नीचे बातें कर रही थीं। तारा ने एक ऐसे खाविंद का जिक्र करते हुए, जिसने अपनी बीवी को महज इसलिए डंडों से मारा था कि वह बिना उसकी इजाजत के गंगा नहाने चली गई थी, गुस्से के साथ कहा- ''ऐसे आदमी के मुँह में आग लग जाए।''

यह सुनकर औरतें सन्नाटे में आ गईं। किसी ने हाथ सीने पर रख लिया, किसी ने दाँतों से जबान दबाई-तारा को यह कहना मुनासिब नहीं था। कुंदन ने तेवरी बदलकर कहा- ''तारा बहन, तुम जबान सँभालकर बात नहीं करतीं। अपना शौहर था, मार ही बैठा तो क्या हुआ?''

कुंदन जयगोपाल चौधरी की बीवी थी। बाबू जयगोपाल दुनिया के उन चंद खुशकिस्मत आदमियों में थे, जिन्हें बग़ैर हाथ-पैर हिलाए दोनों वक्त अच्छा भोजन, तरमाल खाने को मिल जाता है। वह साल-भर अपने दालान में बैठे गपशप किया करते। मगर यह गाँव इनकी मौरूसी मिल्कियत नहीं थी। मौरूसी जायदाद तो बाबू मदनगोपाल मरहूम के जमाने ही में खुर्द-बुर्द हो चुकी थी। जयगोपाल के ससुर ने उन्हें तकलीफ़ में देखकर यह गाँव गुजारे के लिए दे दिया था। वह इसके अलावा हर महीने में अपने दामाद की इमदाद करता रहता था। जयगोपाल की खूब आराम से कटती थी और आइंदा के लिए उन्हें कोई अंदेशा नहीं था। बूढ़ा ससुर निःसन्तान था। उसके आँख मूँदते ही बीस हज़ार सालाना नफ़ा की जायदाद हाथ लगेगी। ऐसे खुशनसीब आदमी दुनिया में कितने होते हैं? यह तो नहीं कहा जा सकता कि जयगोपाल अपने ससुर की मुबारक मौत के इच्छुक थे, मगर साल में दो-तीन बार वह इस शुभ-व्रत की आरजू में सत्यनारायण का पाठ जरूर करवाते थे।

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