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मनोहर श्याम जोशी
जन्म : 9 अगस्त, 1933।

निधन : 30 मार्च 2006।

अजमेर में जन्मे, लखनऊ विश्वविद्यालय के विज्ञान स्नातक मनोहर श्याम जोशी ‘कल के वैज्ञानिक’ की उपाधि पाने के बावजूद रोजी-रोटी की खातिर छात्र जीवन से ही लेखक और पत्रकार बन गये। अमृतलाल नागर और अज्ञेय इन दो आचार्यों का आशीर्वाद उन्हें प्राप्त हुआ। स्कूल मास्टरी, क्लर्की और बेरोजगारी के अनुभव बटोरने के बाद अपने 21 वर्ष में वह पूरी तरह मसिजीवी बन गये। प्रेस, रेडियो, टी.वी., वृत्तचित्र, फिल्म, विज्ञापन-सम्प्रेषण का ऐसा कोई माध्यम नहीं जिसके लिए उन्होंने सफलतापूर्वक लेखन-कार्य न किया हो। खेल-कूद से लेकर दर्शनशास्त्र तक ऐसा कोई विषय नहीं जिस पर उन्होंने कलम न उठाई हो। आलसीपन और आत्मसंशय उन्हें रचनाएँ पूरी कर डालने और छपवाने से हमेशा रोकता चला आया। पहली कहानी तब छपी थी जब वह अठारह वर्ष के थे लेकिन पहली बड़ी साहित्यिक कृति तब प्रकाशित करवाई जब सैंतालीस वर्ष के होने आये।

केन्द्रीय सूचना सेवा और टाइम्स ऑफ इंडिया समूह से होते हुए सन् 1967 में हिन्दुस्तान टाइम्स प्रकाशन में साप्ताहिक हिन्दुस्तान के संपादक बने और वहाँ एक अंग्रेजी साप्ताहिक का भी संपादन किया। टेलीविजन धारावाहिक ‘हम लोग’ लिखने के लिए सन् 1984 में संपादक की कुर्सी छोड़ दी और तब से आजीवन स्वतंत्र लेखन किया।

उन्होंने ही टेलीफोन में धारावाहिकों की शुरुआत कराई, जिसके कारण उन्हें भारतीय सोप ओपेरा का जनक कहा गया ‘हम लोग’ के अलावा ‘बुनियाद’, ‘हमराही’, ‘मुंगेरीलाल के हसीन सपने’ व ‘जमीन-आसमान’ जैसे चर्चित धारावाहिकों के साथ उन्होंने ‘हे राम’, ‘पापा कहते हैं’, ‘भ्रष्टाचार’ आदि अनेक फिल्मों की भी पटकथाएँ लिखीं।

‘क्याप’ उपन्यास के लिए उन्हें वर्ष 2005 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

कृतियाँ :

उपन्यास : कसप, कुरु कुरु स्वाहा, ट-टा प्रोफेसर, हमज़ाद, हरिया हरक्यूलिज की हैरानी, क्याप, कौन हूँ मैं, बुनियाद
व्यंग्य : नेता जी कहिन, उस देश का यारो क्या कहना।
संस्मरण : लखनऊ मेरा लखनऊ, रघुवीर सहाय : रचनाओं के बहाने एक संस्मरण।
सिनेमा : पटकथा लेखन : एक परिचय।
कहानी : मंदिर के घाट की पैड़ियाँ, दस प्रतिनिधि कहानियाँ (कहानी संग्रह)।
साक्षात्कार : बातों-बातों में।
कॉलम-आलेख : 21वीं सदी।
यात्रा-संस्मरण : पश्चिम जर्मनी पर एक उड़ती नजर, चीन यात्रा, क्या हाल हैं चीन के,
नाटक : कक्काजी कहिन।
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