Satya Ke Prayog - Hindi book by - Mahatma Gandhi - सत्य के प्रयोग - महात्मा गाँधी
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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा

गोखले की उदारता


विलायत में मुझे पसली की सूजन की जो शिकायत हुई थी, उसकी बात मैं कर चुका हूँ। इस बीमारी के समय गोखले विलायत आ चुके थे। उनके पास मैं और केलनबैक हमेशा जाया करते थे। अधिकतर लड़ाई की ही चर्चा होती थी। कैलनबैक दो जर्मनी का भूगोल कंठाग्र था और उन्होंने यूरोप की यात्रा भी खूब की थी। इससे वे गोखले को नकशा खींचकर लड़ाई के मुख्य स्थान बताया करते थे।

जब मैं बीमार पड़ा तो मेरी बीमारी भी चर्चा का एक विषय बन गयी। आहार के मेरे प्रयोग तो चल ही रहे थे। उस समय का मेरा आहार मूंगफली, कच्चे और पक्के केले, नींबू, जैतून का तेल, टमाटर और अंगूर आदि का था। दूध, अनाज, दाल आदि मैं बिल्कुल न लेता था। डॉ. जीवराज मेंहता मेरी सार-संभाल करते थे। उन्होंने दूध और अन्न लेने का बहुत आग्रह किया। शिकायत गोखले तर पहुँची। फलाहार की मेरी दलील के बारे में उन्हें बहुत आदर न था, उनका आग्रह यह था कि आरोग्य की रक्षा के लिए डॉक्टर जो कहे सो लेना चाहिये।

गोखले को आग्रह को ठुकराना मेरे लिए बहुत कठिन था। जब उन्होंने खूब आग्रह किया, तो मैंने विचार के लिए चौबीस घंटो का समय माँगा। केलनबैक और मैं दोनों घर आये। मार्ग में अपने धर्म विषय में मैंने चर्चा की। मेरे प्रयोग में वे साथ थे। उन्हे प्रयोग अच्छा लगता था। पर अपनी तबीयत के लिए मैं उसे छोडूँ तो ठीक हो, ऐसी उनकी भी भावना मुझे मालूम हुई। इसलिए मुझे स्वयं ही अन्तर्नाद का पता लगाना था।

सारी रात मैंने सोच-विचार में बितायी। यदि समूचे प्रयोग को छोड़ देता, तो मेरे किये हुए समस्त विचार मिट्टी में मिल जाते। उन विचारो में मुझे कही भी भूल नहीं दिखायी देती थी। प्रश्न यह था कि कहाँ तक गोखले के प्रेम के वश होना मेरा धर्म था, अथवा शरीर-रक्षा के लिए ऐसे प्रयोगों को किस हद तक छोडना ठीक था। इसलिए मैंने निश्चय किया कि इन प्रयोगों में से जो प्रयोग केवल धर्म की दृष्टि से चल रहा है, उस पर ढृढ रहकर दूसरे सब मामलो में डॉक्टर के कहे अनुसार चलना चाहिये।

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