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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा

अंग्रेजों का गाढ़ परिचय


इस प्रकरण को लिखते समय ऐसा समय आ गया है, जब मुझे पाठकों को यह बताना चाहिये कि सत्य के प्रयोगों की यह कथा किस प्रकार लिखी जा रही हैं। यह कथा मैंने लिखनी शुरू की थी, तब मेरे पास कोई योजना तैयार न थी। इन प्रकरणों को मैं अपने सामने कोई पुस्तके, डायरी या दूसरे कागज पत्र रखकर नहीं लिख रहा हूँ। कहा जा सकता हैं कि लिखने के दिन अन्रयामी मुझे जिस तरह रास्ता दिखाता है, उसी तरह मैं लिखता हूँ। मैं निश्चयपूर्वक नहीं जानता कि जो क्रिया मेरे अन्तर में चलती है, उसे अन्तर्यामी की क्रिया कहा जा सकता है या नहीं। लेकिन कई वर्षो से मैंने जिस प्रकार अपने बड़े से बड़े माने गये और छोटे से छोटे गिने जा सकने वाले कार्य किये है, उसकी छानबीन करते हुए मुझे यह कहना अनुचित नहीं प्रतीत होती कि वे अन्तर्यामी की प्रेरणा से हुए है।

अन्तर्यामी को मैंने देखा नहीं, जाना नहीं। संसार की ईश्वर विषयक श्रद्धा को मैंने अपनी श्रद्धा बना लिया है। यह श्रद्धा किसी प्रकार मिटायी नहीं जा सकती। इसलिए श्रद्धा के रूप मैं पहचानना छोड़कर मैं उसे अनुभव के रूप में पहचानता हूँ। फिर भी इस प्रकार अनुभव के रूप में उसका परिचय देना भी सत्य पर एक प्रकार का प्रहार है। इसलिए कदाचित यह कहना ही अधिक उचित होगा कि शुद्ध रूप में उसका परिचय कराने वाला शब्द मेरे पास नहीं हैं।

मेरी यह मान्यता हैं कि उस अदृष्ट अन्तर्यामी के वशीभूत होकर मैं यह कथा लिख रहा हूँ।

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