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जीवनी/आत्मकथा >> अरस्तू

अरस्तू

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :69
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10541

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सरल शब्दों में महान दार्शनिक की संक्षिप्त जीवनी- मात्र 12 हजार शब्दों में…

जन्म और बाल-वृत्त

अरस्तू, जिसके नाम का अर्थ है ‘श्रेष्ठ उद्देश्य’, का जन्म एशिया कोचक (माइनर) के कैल्किदिस नगर के स्तौगिरा नामक स्थान में ईसा पूर्व 384 को हुआ था। एजियन सागर के निकट यह स्थान आधुनिक नगर थेसालोनिकी से 55 किमी दूर पूर्व में स्थित था। उसके पिता निकोमैकस के पूर्वज, संभवतः, ईसा पूर्व आठवीं शताब्दी में माइसिनी से आकर कौल्किदस में बस गए थे। अरस्तू की माता के पूर्वज कैल्किदिस के ही मूल निवासी थे। इस प्रकार अरस्तू के शरीर में यूनान और एशिया कोचक के रक्तों का समिश्रण हो गया था। इस मिश्रण का प्रसन्न प्रभाव उसके द्विमुख दृष्टिकोण में साफ झलकता है। जहां वह एक ओर सत्य की खोज करने वाला दार्शनिक था वहीं दूसरी और भौतिक जगत का अन्वेषण करने वाला वैज्ञानिक था। अरस्तू ने दोनों प्रकार के संस्कारों में समन्वय स्थापित करने का पूरा प्रयास किया किंतु उसके जीवन की घटनाएं उसे कभी एक ओर ले जातीं, कभी दूसरी ओर।

बालक अरस्तू के पिता मकदूनिया के सम्राट और सिकंदर के पितामह अमींतास द्वितीय के प्रमुख चिकित्सक थे। इस पद पर रहते हुए उन्होंने चिकित्साशात्र और प्रकृति विज्ञान पर कई पुस्तकें लिखीं जो अरस्तू को घुट्टी में मिलीं और वह बचपन से ही प्रकृति विज्ञान में रुचि लेने लगा यद्यपि उसका शिक्षण-प्रशिक्षण मकदूनिया के अभिजात तंत्र के एक सदस्य के रूप में हो रहा था।

महानता के बीज अक्सर कंटकों में मिलते हैं-कंटक पथ के हों या जीवन के। अरस्तू के जीवन में ऐसा ही कंटक पथ उभर आया जब उसके सिर से माता का वात्सल्य भरा आंचल और पिता का संरक्षण देने वाला साया निष्ठुर विधाता ने सदा के लिए खींच लिया। परंतु निराशा के इस सागर में उसके एक संबंधी प्रॉक्जेनस आशा के द्वीप के रूप में उभर कर आए। उन्होंने इस होनहार बिरवान को संभाला, पढ़ाया लिखाया। कालांतर में अरस्तू प्रॉक्जेनस के अनुग्रह से सम्पन्न हो कृतज्ञतास्वरूप उनके पुत्र नाइकेनर को न केवल अपने पुत्र निकोमैकस का संरक्षक नियुक्त किया अपितु अपनी मृत्यु से पूर्व अपनी पुत्री पीथियास का विवाह भी उससे से कर दिया। खैर यह काफी बाद की बात है।

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