हेरादोतस की विश्वसनीयता
सत्य को खोजने के लिए हेरादोतस अनवरत प्रयत्न करते रहे। कभी-कभी वह असफल हुए या भूलकर बैठे परंतु उनकी गलतियां उनके प्रयत्नों के विस्तार को देखते हुए नगण्य थीं। अक्सर वह वास्तविक साक्षियों से सीधे प्राप्त सूचनाएं देते हैं, या घटना के दोनों पक्षों की बात कहते हुए शेष पाठकों के लिए छोड़ देते हैं कि वे अपने निष्कर्ष निकालें। वे इतिहास को कला और विज्ञान दोनों मानते थे जिस कारण वे होमर की काव्यात्मकता का प्रश्रय लेते हैं और दूसरी ओर अपने समय के वैज्ञानिक टेम्पर को भी नहीं विस्मृत करते।
प्राचीन काल में यद्यपि इस्तोरिया को अक्सर आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा था परंतु आधुनिक इतिहासकारों और दार्शनिकों का दृष्टिकोण सामान्यतः उनके प्रति सकारात्मक ही रहा है। विवादों के बावजूद हेरादोतस अपने समय से दो शताब्दियों पहले के यूनानी संसार और पारसीक साम्राज्य और उसके भूभाग से संबंधित घटनाओं के लिए आज भी प्राथमिक और कभी-कभी एक मात्र स्रोत माने जाते हैं। अन्य अनेक परवर्ती इतिहासकारों की तरह हेरादोतस ने पूरी तरह से विश्लेषणात्मक ऐतिहासिक तथ्यों को वरीयता दी है। इसमें उसका उद्देश्य यही रहा है कि लोगों को विचित्र किंतु आकर्षक विदेशी बातों से, नाटकीयता से और उत्तेजक घटनाओं के वर्णन से श्रोताओं व पाठकों को आनंद दें। इस कारण, पूर्वकाल में और आज भी, लोगों को कुछ प्रसंग विवादास्पद और शंकास्पद प्रतीत होते हैं। हेरादोतस की रचनाओं की यथार्थता के प्रति विवाद तो उनके अपने काल से ही होता रहा है। सिसरो, अरस्तू, (सामोस का) जोसेफस, डूरिस, हारपोक्रेषन और प्लूटार्क ने विवाद पर अपने-अपने मत व्यक्त किए हैं। सामान्यताः तब और विषेष रूप से आज भी वह विश्वसनीय माना जाता है। ऑबिन, बोलनी, पियरे मोनटेट, बदनाल, जैक्सन, ड्यू बोइस, ए.एच.एल. हीरेन, डेविडसन, डियोप, यो, बेल्सवी, सलेंको, स्ट्रेबो जैसे प्राचीन और अर्वाचीन विद्वान नियमित रूप से हेरादोतस को उद्धृत करते रहे हैं। इनमें से अनेक विद्वान (बेल्सबी, हीरेन, ऑबिन आदि) हेरादोतस की विश्वसनीयता का स्पष्ट रूप से उल्लेख करते हैं।
...Prev | Next...