जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप कवि प्रदीपसुधीर निगम
|
|
राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।
´´शहर?´´ किसान ने आश्चर्य से कहा, ´´वहां तो बिल भी नहीं होते। और शहर में आखिर करोगे क्या?´´
´´अरे बिल नहीं है तो क्या हुआ, मैं राजनीति में घुसूंगा। अब मेरी पूंछ तो कट ही चुकी है यानी मेरी असली पहचान खत्म हो गई है। तुम्हारा शहद चाट लिया है इसलिए अंदर जहर होते हुए भी मुंह से मीठा बोलूंगा। जब नेता बन जाऊंगा तो नेवले जैसे फुर्तीले कमांडो मेरी रक्षा करेंगे।´´
यह सुनकर किसान बेचारा घनचक्कर हो गया। उसे लगा उसके सामने कोई नेता ही खड़ा है। बड़ी हिम्मत करके पूछा, ´´लेकिन तुम्हारे ऊपर हत्या का जो दाग है उसकी तुम्हें चिंता नहीं है?´´
´´तुम अभी राजनीति से परिचित नहीं हो। आपराधिक पृष्ठभूमि और ऊपरी मीठे बोल सत्ता तक पहुंचने की सीढ़ी होते हैं। सत्ताधारी नेताओं के दागों की चिंता विपक्ष करता है, या उन पर मीडिया चिल्लाता है। दागी नेता या सरकार को इसकी चिंता नहीं होती।´´
इतना कहकर सांप सर्राता हुआ शहर की ओर चला गया।
|