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जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप

कवि प्रदीप

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :52
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10543

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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।


ऊंट प्रसन्नतापूर्वक उनके साथ रहने लगा। एक बार बहुत तेज बारिश आई। शिकार के लिए कोई नहीं निकल सका। बारिश लगातार होती रही, दिन गुजरते रहे, भूख बढ़ती रही। ऊंट को तो भूखे-प्यासे रहने की आदत थी, अतः वह मस्त बना रहा। सियार ने सिंह को संकेत दिया कि ऊंट को उत्तम पदार्थ मानकर ग्रहण कर लिया जाए परंतु प्रचारित रूप से वचन का पक्का सिंह अपनी शरण वाली बात से हटना नहीं चाहता था। उसने सियार को धिक्कारते हुए कहा कि मैंने उसे अभयदान दिया है मैं उसे कैसे मार सकता हूं।´´

भूख से सभी का हाल बेहाल था। अंततः चीते से मंत्रणा कर सियार ने एक चाल चली। सबसे पहले शेर के सामने चीता प्रस्तुत हुआ और कहा, ´´महाराज, आप भूखे हैं यह हमसे नहीं देखा जाता। कृपा करके मुझे अपना आहार बना लें और मुझे स्वामिभक्ति सिद्ध करने का अवसर दें।´´ सखा-पालक राजा ने इसे अस्वीकार कर दिया। अब सियार और कौआ आगे आए। उन्होंने भी वही दोहराया। राजा ने कहा, ´´अपनी भूख के लिए तुम जैसे वर्षों पुराने स्वामिभक्तों को मारना नीति-विरुद्ध है।´´

ऊंट ने जब देखा कि इतने पुराने सखा-मित्र-अधिकारी राजा सिंह को भूख से बेहाल देखकर स्वयं को आहार के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं तो उसका भी कुछ कर्तव्य बनता है। वह भी सिंह से विनम्र निवेदन कर बैठा, ´´आपने अपना प्रेम और आश्रय दिया है वरना मैं तो कहीं का नहीं रहता! भूखजनित आपकी विह्वलता मुझसे देखी नहीं जाती। कृपया मुझे आहार के रूप में ग्रहण कर कृतार्थ करें।´´

सिंह ऊंट के प्रस्ताव पर चुप रहा यह देखकर सलाहकार चीते ने झपट्टा मार कर ऊंट की गर्दन पर वार किया। सियार ने भी अनुसरण किया।

देखते ही देखते ऊंट सबके भोजन के रूप में प्रस्तुत हो गया।

सलाहकारों ने अपना कर्तव्य निभाया। राजा सिंह ने कहा कुछ नहीं किंतु उसके मौन से कम्पनी की पालिसी तय हो गई। दो मिनट के मौन के बाद सिंह ने सखा ऊंट का आहार ग्रहण किया। ऊंट के साथ सिंह का वचन भी मारा गया। उसने नहीं मारा था पर उसकी आखें गीली थीं।

सबके सुख और तृप्ति की नीति कम्पनी के हितों को ध्यान रखकर संचालित होती है। उसके लिए भावनात्मक तौर-तरीके अपनाने हेतु उपयुक्त वातावरण तैयार करने के लिए चीते और सियार जैसे सक्षम अधिकारी और कौए जैसे प्रचार कर्मी होने चाहिए।

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