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जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप

कवि प्रदीप

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :52
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10543

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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।

´अमर उजाला´ बंद करि देउ

प्रख्यात संपादक और लेखक बनारसी दास चतुर्वेदी राज्यसभा का सदस्यता-कार्यकाल समाप्त होने पर अपने पैतृक नगर फिरोजाबाद में रहने लगे। चतुर्वेदी जी को सुबह-सवेरे तीन-चार मील टहलने का शौक शुरू से ही था अतः यह क्रम फिरोजाबाद में भी चलने लगा। घूमने के लिए जाते समय मस्तमौला चतुर्वेदी जी की सज-धज देखने लायक होती थी। पैरों में अधिकतर पुराने-बेढंगे जूते या चप्पल, एड़ी को छूता हुआ शरई पैजामा, खद्दर का कुर्ता और घुटनों को पार करता कंधे पर लटकता बृहद्काय झोला। ज्यादातर खद्दरपोशों की तरह वे भी अपने कपड़े नित्य नहीं धो पाते थे, इस कारण वस्त्र थोड़े मैले दिखते। और मैले कपड़ों पर इस्तरी करने का सवाल ही नहीं पैदा होता।

प्रतिदिन की तरह घूम चुकने के बाद एक सुबह चतुर्वेदी जी ने अपने एक मित्र के यहां कुछ समय बिताया। वहां से मंडी होते हुए घर जाने की ठानी।

मंडी में एक दुकान के सामने मूंगफली के कई ढेर लगे देखकर चतुर्वेदी जी रुके और पूछा, ´´भइए, मूंगफली का क्या भाव है?´´

सुबह-सुबह ग्राहक आया देखकर दुकानदार ने दो अलग-अलग ढेरों की ओर हाथ से इशारा करते हुए उत्साहित हो बताया, ´´जा ढेर की पंद्रह रुपये पसेरी और बा ढेर की बारह रुपया।´´

´´एकइ भाव है कि कुछ कमउं हुइ सकत है?´´ चतुर्वेदी जी मोल भाव पर उतर आए।

´´हम थोक बैपारी हैं, हमारे एकइ भाव हैं।´´ इतना कह कर उसने चतुर्वेदी जी को ऊपर से नीचे तक देखा और बोला, ´´तुमैं हमारी सलाह है कि तुम बारह रुपया पसेरी वाली मूंगफली लेउ। जामैं तुमैं चार पैसा जादा फायदा हुइ जैहै।´´

दुकानदार की बात सुनकर चकित चतुर्वेदी जी ने पूछा, ´´तैनें मोयं का समझ लिए हैं?´´

´´समझिबे की का बात है? का हम जानत नहीं कि तुम फेरी में मूंगफली बेचत हौ।´´

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