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जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप

कवि प्रदीप

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :52
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10543

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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।


मुजरों में आम तौर पर अश्लीलता परोसी जाती थी। जोष मलीहावादी जैसे मषहूर शायर ने, सस्ती लोकप्रियता की चाह में लिख मारा था- ‘मेरे जोबना का देखो उभार।’ श्रंगार में अश्लीलता से बचना प्रदीप जानते थे। इसी फिल्म में उनके एक अन्य गीत को लताजी ने गाया,

होने लगा है मुझपे जवानी का असर।
झुकी जाए नजर...।

इस फिल्म के गीतों का पहला एल.पी. रिकार्ड बना।

‘नास्तिक’ की अपूर्व सफलता के बाद फिल्मिस्तान ने अपनी दूसरी फिल्म जागृति (1954) भी गीत लिखने के लिए प्रदीप को सौंप दी। उन्होंने फिल्म की कहानी पढ़ी जो स्कूल में पढ़ने वाले शैतान बच्चों की थी। स्थिति-परिस्थिति को देखते हुए उन्होंने अपने स्वभाव और प्रकृति के अनुकूल एक नई सिचुएषन पैदा कर दी जिससे कि फिल्म की, विषय के अनुरूप, आवश्यकता की पूर्ति हो गई। यहाँ यह उल्लेख प्रासंगिक होगा कि प्रदीप पर गांधीजी का बड़ा प्रभाव था इसलिए उन्होंने गांधी की छटा, छवि और श्रृद्धा सहज भाव से इस गीत में समर्पित कर दी-

दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल।
साबरमती के संत तू ने कर दिया कमाल।

गीत आशा भोंसले ने गाया था। आजादी मिलना ही काफी नहीं होता उसे सुरक्षित रखना भी देशवासियों का कर्तव्य होता है। इस कर्तव्य को मधुर आवाज देते हुए रफी ने गाया-

हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल के ।
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के ।

शोक और हर्ष के, एक ही मुखड़े के दो गीत लिखे-

चलो चलें मां, सपनों के गांव में।
कांटों से दूर कहीं फूलों की छांव में।

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