लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप

कवि प्रदीप

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :52
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10543

Like this Hindi book 0

राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।


कौओं में, शैतान बच्चों की तरह, खिलंदड़ी प्रवृत्ति कूट-कूटकर भरी होती है। मौका पाते ही, विपक्ष की तरह, बिना बात अन्य पक्षियों की पूंछ खींचना इनकी प्रिय हाबी है। अक्सर आसमान में उड़ती चील या कोई गाने वाली चिड़िया जब इनके हत्थे, या कहें, पंजे चढ़ जाती है तो ये उसके परखचे ढ़ीले कर देते हैं। सोई हुई गाय या कुत्ते के कान खींचकर प्राइमरी के अध्यापकों की तरह ये अपना मनोरंजन करते हैं।

कौओं की एक आंख होती है, इसीलिए इन्हें एकाक्षी कहा जाता है। वर्णन आता है कि इंद्र पुत्र जयंत ने कौए का रूप धारण कर सीता जी के साथ अभद्र आचरण किया था जिस पर राम ने एक तिनके को बाण के रूप में मंत्र-पूतित कर जयंत रूपी कौए के पीछे छोड़ दिया। कौआ भागा-भागा फिरा। कहीं भी सुरक्षा न मिलने पर अंततः वह रामजी की ही शरण में आया। राम ने उसके प्राण न लेकर उसकी एक आंख पर प्रहार करने का बाण को आदेश दिया। तभी से कौए को काना कहा जाता है। पर सिद्धांततः कौए को काना नहीं कहा जा सकता। सवाल यह है कि अगर आप कहना भी चाहें तो उसे दाईं आंख का काना कहेंगें या बाईं आंख का। कारण, इनके दो आंख-गोलक होते हैं परंतु पुतली सिर्फ एक होती है जिसे ये किसी भी गोलक पर ला सकते हैं।

आंख संबंधी इतनी दक्षता के बावजूद कौए बेचारे रात में नहीं देख सकते। हाल ही में एक समाचार आया था कि कुछ डाकुओं के पास ऐसे चश्में हैं जिन्हें पहनकर रात्रि के अंधेरे में भी देखा जा सकता है। सुना है कौए उन डाकुओं के अड्डे की तलाश में हैं ताकि वे चश्में वहां से झटके जा सकें। परंतु कौओं का बहुमत यही चाहता है कि वे रात में भले ही न देख पाएं दिन में उनकी दृष्टि सटीक बनी रहे ताकि दिन में न देख पाने वाले उल्लुओं के शत्रु बने रहकर अपना ´कौशकारि´ नाम सार्थक कर सकें क्योंकि लक्षणा से ´उल्लू´ का शत्रु ´बुद्धिमान´ होता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book