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जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप

कवि प्रदीप

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :52
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10543

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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।


मनुष्य की मेधा, बुद्धि, मति, विवेक आदि सिर में निवास करते है फिर भी सिर से हाथ हमेशा दो गुने होते हैं। एक सिर- दो हाथ, चार सिर-आठ हाथ, दस सिर-बीस हाथ। पुण्य कार्य हाथ से किए जाते हैं तो जेब काटने (जिसे हाथ की सफाई भी कहते हैं) से लेकर किसी का गला दबाने या काटने में भी हाथों का हाथ रहता है। रंगे हाथ पकड़ जाने पर हथकड़ी हाथ में डाली जाती है। जेल जाने पर ही अधिकांश अपराधी अपने किए पर हाथ मलते रह जाते हैं। पर कई बार अच्छे कामों के लिए भी लोगों को हाथों से हाथ धोना पड़ा है। ढ़ाके की मलमल बनाने वाले बुनकरों के हाथ अंग्रजों ने इसीलिए कलम कर दिए गए थे कि वे हाथ विश्व प्रसिद्ध मलमल बनाते थे जिससे ब्रिटेन का वस्त्र-उद्योग उसके हाथ से निकला जा रहा था।

मूर्त क्रियाओं, अमूर्त भावों और अभिव्यक्तियों को हाथों पर आरोपित कर मुहावरेदार भाषा का सृजन किया गया जिससे उसकी समाहार शक्ति बढ़ी है। ऐसी अभिव्यक्तियों में हाथ स्वयं तो हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते है परंतु भाव-व्यंजना को हाथों ऊंचा चढ़ा देते हैं। भ्रष्ट सरकारी कर्मचारी से अपना काम करवाने के लिए उसका हाथ गरम करना पड़ता है। बगैर आग के हाथ गरम हो जाने से धन की प्राप्ति होती है, वहीं हाथ खींचने से धन की आमद बंद हो जाती है। पोखरन विस्फोट के बाद अमरीका ने शक्ति-संतुलन अपने हाथ में रखने के उद्देश्य से भारत की ओर से अपना हाथ खींच लिया। तब भारत ने अपने अन्य खर्चों से हाथ सिकोड़ लिए पर अमरीका के सामने कानों हाथ नहीं रखा यानी पनाह नहीं मांगी क्योंकि राष्ट्रीय अस्मिता की तुलना में वह विदेशी आर्थिक सहायता को हाथ का मैल समझता था। अमरीका ने जब भारत को अपने हाथों से निकलते देखा तो उसके हाथों के तोते उड़ गए। बहरहाल हम किसी तरह अमरीका के हाथ नहीं आए।

पांडव जब कौरवों से जुआ खेलने बैठे तो उनके सभी हाथ (दांव) खाली गए और वह बेहाथ हो गए। कौरवों की जीत में शकुनी मामा का बड़ा हाथ रहा। राज्य, धन और पत्नी को जुएं में हारकर पांडव कौरवों के हाथ के नीचे आ गए। उसके बाद उन्हें वही करना पड़ा जो कौरवों ने चाहा क्योंकि जुएं में पिटकर पांडव पहले ही हाथ कटा चुके थे। इसी से रुष्ट होकर भीमसेन ने अपने शई युधिष्ठिर के हाथ जला डालने की बात कही थी।

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