जीवनी/आत्मकथा >> शेरशाह सूरी शेरशाह सूरीसुधीर निगम
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अपनी वीरता, अदम्य साहस के बल पर दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा जमाने वाले इस राष्ट्रीय चरित्र की कहानी, पढ़िए-शब्द संख्या 12 हजार...
जिस समय इब्राहिम हिन्दुस्तान आया उस समय भारत एक सुगठित साम्राज्य न होकर राज्यों का एक समूह था। बाबरनामा में बाबर इन पांच मुस्लिम राज्यों का जिक्र करता है-जौनपुर और दिल्ली लोदियों के अधीन थी, बंगाल पर अलाउद्दीन शाह का शासन था, मालवा पर सुल्तान महमूद द्वितीय अधिकार किए था, गुजरात मुहम्मद शाह द्वितीय के अधीन था। दक्षिण में बहमनी शासकों की शक्ति क्षीण पड़ गई थी और वह अहमद नगर, बीदर, बरार, बीजापुर और गोलकुंडा जैसे स्वतंत्र राज्यों में बिखर गया था। मालवा के दक्षिण में स्थित खानदेश पर फारुकी राजवंश काबिज था। ऐसे राजनीतिक वातावरण में इब्राहिम सूर भारत आया। सबसे पहले इब्राहिम पंजाब के हरियाना और बाएक्ला परगनों के जागीरदार महावत खान सूर की सेवा में रहा। जब जागीरदार विजोरा में रहने लगा तब उसने नौकरी छोड़ दी। फिर उसने दिल्ली-लाहौर मार्ग पर पड़ने वाले हिसार फिरोजा (जिला दिल्ली) आकर जमाल खान सारंगखानी नामक अफगानी सरदार के यहां नौकरी कर ली। कुछ समय बाद उससे खुश होकर सारंगखानी ने परगना नागौर में उसे कुछ गांव दे दिए जिससे वह चालीस घोड़ों का सरदार बन गया। इब्राहिम की मृत्यु के बाद उसके बेटे हसन ने उसकी गद्दी संभाली। हसन की चार बीबियों में पहली अफगान बीबी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम फरीद रखा गया। फरीद के जन्म वर्ष के बारे में निश्चयात्मक रूप कुछ नहीं कहा जा सकता। इतिहासकार कहते हैं कि या तो वह 1486 में या 1472 में पैदा हुआ था।
फरीद, मियां हसन की चार बीबियों में सबसे चहेती छोटी की, अवहेलना शिकार हुआ। इस कारण वह भी फरीद की उपेक्षा करने लगा क्योंकि वह दासी होने के बावजूद कमसिन छोटी बीबी पर हमेशा लट्टू रहता था। हसन के कुल आठ बच्चे थे जिनमें से फरीद और निजाम सगे भई थे। छोटी पत्नी से दो पुत्र थे- सुलेमान और अहमद। उपेक्षा से तंग आकर 1494 में फरीद ने घर छोड़ दिया और पढ़ाई करने के लिए जौनपुर चला गया।
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