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जीवनी/आत्मकथा >> शेरशाह सूरी

शेरशाह सूरी

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :79
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10546

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अपनी वीरता, अदम्य साहस के बल पर दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा जमाने वाले इस राष्ट्रीय चरित्र की कहानी, पढ़िए-शब्द संख्या 12 हजार...


नारि स्वभाव सत्य ही कहहीं, अवगुण...

हसन अपनी जागीर के सुप्रबंधन और संपन्नता से बहुत प्रसन्न हो गया। जहां अवसर मिलता दरबारियों और साथियों के सामने जागीर की संपन्नता की बातें करता और फरीद की प्रशंसा करते नहीं अघाता। कैसे उसने आतताई जमींदारों को झुकाया, कैसे लगान वसूलने का नया प्रबंध किया आदि आदि? फरीद की योग्यता और कार्य कुशलता की ख्याति पूरे बिहार में फैल गई। बिहार के सभी अफगान सरदार उसके प्रशंसक हो गए। मित्र और हितैषी तो उसकी प्रशंसा के गीत गाते फिरते।

 कुछ समय बाद जब हसन खान जमाल खान के दरबार से होते हुए सहसराम आया तो फरीद के बारे में जो कानों से सुना था उसे आंखों से देख भी लिया। सामंत, सैनिक जो भी उससे मिलता अपनी संपन्न्ता का श्रेय फरीद खान को ही देता। हसन खान ने खुद देखा कि राजकोष भरा-पूरा है। फरीद के प्रति उसके मन में जो आशंका और दुर्भाव थे, दूर हो गए। उसने फरीद और उसके भाई निजाम को सम्मानित किया, अनेक उपहार दिए। उसने कहा कि मेरी वृद्धावस्था आ गई है अब तुम दोनों को ही जागीर की देखभाल करनी है।

परंतु फरीद की सौतेली मां के हृदय में तो ईर्ष्या की आग जल रही थी। वह अहंकार नहीं खोना चाहती थी। अपने बेटो से फरीद की उल्टी-सीधी शिकायतें करवाती और खुद भी हसन के कान भरती। जब शिकायतों का असर नहीं पड़ा तो सुलेमान की मां ने, जो हसन की दासी पत्नी थी, हसन से बोलना चालना बंद कर दिया। एक तरह से उसका वैसे ही बहिष्कार कर दिया जैसे फरीद की मां का कर रखा था। पत्नी के दर्शन और वार्तालाप से वंचित हसन बहुत दुखी हो गया। उसकी अवस्था ऐसे ढलान पर थी जहां वासना का कीचड़ फिसलन बढ़ा देता है। प्रेयसी दासी का विमुख हो जाना उसे असह्य प्रतीत होने लगा तो उसने पत्नी को बुलाकर रूठने का कारण पूछा, यद्दपि वह अच्छी तरह जानता था कि वह क्या चाहती है! उसने कहा, ‘‘फरीद आपका बड़ा लड़का है। आपके बाद हमारा क्या होगा ? इसलिए मेरे बेटों को परगनों का शासन करने का मौका दीजिए। यहां दशरथ और कैकेयी वाली कहानी दोहराई जा रही थी। हसन जब राजी हो गया तो उसने कसम धरवा ली कि वह फरीद को हटा देगा।

यह बात जब फरीद तक पहुंची तो उसे बुरी लगी क्योंकि वह परगनों पर 20-21 वर्ष शासन कर चुका था और जायदाद को अपनी समझने लगा था। हसन ने साफ-साफ कहा, ‘‘फरीद, मैं किन्हीं कारणों से मजबूर हो गया हूं। मैं जानता हूं कि सुलेमान और उसके भाई अयोग्य हैं और उनकी तुमसे कोई तुलना भी नहीं है। परंतु दिन-रात की पेरशानी से बचने के लिए यह जरूरी हो गया कि कुछ समय के लिए परगनों का इंतजाम उनके हाथों में दे दिया जाए।’’ फरीद ने उच्चकोटि की पितृभक्ति दर्शाते हुए कहा, ‘‘ये दोनों परगने आपकी संपत्ति हैं और अपनी इच्छा के अनुसार आप जिसे चाहें दे सकते हैं।’’

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