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जीवनी/आत्मकथा >> सिकन्दर

सिकन्दर

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :82
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10547

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जिसके शब्दकोष में आराम, आलस्य और असंभव जैसे शब्द नहीं थे ऐसे सिकंदर की संक्षिप्त गाथा प्रस्तुत है- शब्द संख्या 12 हजार...


अत्तालोस का नशा हिरन हो गया, तभी उसने अपमान का घूंट पी लिया। परंतु अत्तालोस का अपमान फिलिप से सहन नहीं हुआ। वह अपनी कुर्सी से उठा और सिकंदर पर झपट पड़ने के लिए जैसे ही आगे बढ़ा तो, दोनों के भाग्य से, या तो गुस्से में जल्दी के कारण या ज्यादा चढ़ी होने के कारण फर्श पर गिर पड़ा।

सिकंदर ने वितृष्णा से, फिलिप का अपमान करते हुए कहा, ‘‘वहां देखिए, यूरोप से एशिया जाने की तैयारी कर रहा शख्स एक कुर्सी से दूसरी कुर्सी पार करते ही गिर पड़ा है।’’

सिकंदर जानता था कि इस घटना के दूरगामी परिणाम होंगे। तात्कालिक दुष्परिणामों से बचने के लिए वह अपनी मां को लेकर राजधानी से चला गया। मां को उसने उसके भाई इपीरोस के नए राजा अलैक्जे़डर प्रथम के पास डोडोना नगर में छोड़ दिया। वह स्वयं इलीरिया चला गया जहां के राजा से उसने शरण मांगी। कुछ वर्ष पूर्व सिकंदर ने इस राजा को युद्ध में पराजित किया था फिर भी अपनी विशाल हृदयता का परिचय देते हुए उसने सिकंदर को एक अतिथि की तरह रखा।

फिलिप का इरादा राजनीति और सैन्य-प्रशिक्षित दिव्य तेज, ओज और पराक्रम से विराजमान वीर पुत्र को त्याग देने का कभी नहीं रहा था। औपचारिक रूप से उसने सिकंदर को त्यागा नहीं था फिर भी हठी सिकंदर गृह त्यागकर चला गया था। फिलिप ने सोचा, ‘‘उस रात जो भी हुआ वह नहीं होना चाहिए था। अत्तालोस ने सीमाएं पार कर डाली थीं। कोई भी स्वाभिमानी पुत्र अपने प्राणों के मूल्य पर भी अपनी मां का सार्वजनिक अपमान सहन नहीं कर सकता।’’

कोरिंथ के डिमारतोश फिलिप के पारिवारिक मित्र थे। फिलिप ने अपनी व्यथा उनसे कही। उनकी मध्यस्थता से सिकंदर छह महीने बाद फिर अपने महल में लौट आया।

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