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जीवनी/आत्मकथा >> सिकन्दर

सिकन्दर

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :82
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10547

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जिसके शब्दकोष में आराम, आलस्य और असंभव जैसे शब्द नहीं थे ऐसे सिकंदर की संक्षिप्त गाथा प्रस्तुत है- शब्द संख्या 12 हजार...



दारा का अंत

गवागामीला के युद्ध में पराजित होकर दारा भागकर एक्बटना पहुंचा। उसकी निर्बलता और अयोग्यता के कारण सैनिक अधिकारियों ने विद्रोह कर दिया। एक्बटना से पीछे हटते हुए विद्रोहियों ने दारा को बंदी बना लिया। 300 विद्रोहियों का नेता बैक्ट्रिया का क्षत्रप और दारा का संबंधी बेसस था। ईसा पूर्व 330 की बसंत ऋतु में सिकंदर मीदिया और पार्थिया पार करते हुए बैक्ट्रिया पहुंचा।

बेसस दारा को एक्बटना के उत्तर में हैक्टोमपोलिस नामक स्थान पर ले गया। सिकंदर उसका पीछा कर रहा था। उसके हेक्टोमपोलिस पहुंचने से पूर्व बेसस के आदमियों ने दारा की छुरा भोंक कर हत्या कर दी। सिकंदर के पहुंचने से पूर्व बेसस ने बैक्ट्रिया में सीमित रहकर स्वयं को पारसीक सम्राट घोषित कर दिया। सिकंदर के आ जाने के भय से अपने साथियों सहित बेसस वहां से चला गया।

बेसस के जाने के बाद सिकंदर वहां पहुंचा जहां दारा अंतिम सांसें ले रहा था। कहा जाता है कि दारा ने टूटती हुई सांसों से सिकंदर के प्रति आभार जताया कि उसने शाही कैदियों को अपनी पनाह में ले लिया है। फिर उसकी सांसे रुक गईं। सम्मान प्रकट करने के लिए सिकंदर ने अपना लबादा दारा के शव पर डाल दिया। उसने लोगों को भ्रमित करने के लिए बताया कि मरते समय दारा ने उसे अकेमेनीड (हखामनी) राजगद्दी के लिए उत्तराधिकारी नामित किया है। सामान्यतः दारा के बाद हखामनी साम्राज्य का अंत मान लिया जाता है।

सिकंदर ने बेसस को राज्य का अपहर्ता घोषित कर दिया और उसे पराभूत करने के लिए निकल पड़ा। बेसस बैक्ट्रिया में बैठा था। बैक्ट्रिया के विरुद्ध सिकंदर को अपने जीवन का सर्वाधिक कठोर युद्ध करना पड़ा। बैक्ट्रिया और सोग्दियाना पर विजय प्राप्त करने में सिकंदर को लगभग तीन वर्ष लगे। बेसस की घुड़सवार सेना यद्दपि अधिक बेहतर थी किंतु पदाति सेना मकदून सेना की तरह प्रशिक्षित नहीं थी।

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