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जीवनी/आत्मकथा >> सिकन्दर

सिकन्दर

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :82
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10547

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जिसके शब्दकोष में आराम, आलस्य और असंभव जैसे शब्द नहीं थे ऐसे सिकंदर की संक्षिप्त गाथा प्रस्तुत है- शब्द संख्या 12 हजार...



सिकंदर महान का अवसान

सूसा से बेबीलोन लौटकर सिकंदर अरब देश पर आक्रमण की योजनाएं बनाने लगा। भारत और बेबीलोन के बीच समुद्री मार्ग का सर्वेक्षण पूरा होने पर उसने नेआर्खोस से बेबीलोन और मिस्र के मध्य समुद्री मार्ग का सर्वेक्षण की तथा अरब की जलमार्ग से परिक्रमा करने की योजना पर बातचीत की। ये योजनाएं बनाते हुए सिकंदर बीमार पड़ गया। माली तथा अन्य स्थानों पर उसे गंभीरे चोटे लगी थीं जिसकी उसने खास चिंता नहीं की थी। अत्यधिक श्रम से उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता क्षीण हो गई थी। ऐसी बीमारी में भी वह विचार-विमर्श करता रहा, देवताओं पर बलि चढाता रहा। सूसा से जब सिकंदर पारसीक खजाना लेने इक्बेटाना गया था उसके प्राण-प्रिय मित्र हेफास्तिओन की अचानक मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु से सिकंदर टूट गया।

अचानक वह रोने लगा। टीलमी ने धीरज बंधाया और रोने का कारण पूछा।

सिकंदर ने भरे कंठ से कहा, ‘‘मित्र, रोने के लिए क्या इतनी बजह कम है कि ये सृष्टि अनंत है और हम किसी एक टुकड़े के भी मालिक न हो पाए।’’

टालमी ने आश्वस्त किया, ‘‘आपने क्या नहीं पाया। फिर भी आपको संतोष नहीं है।’’

सिकंदर ने पलट कर उत्तर दिया, ‘‘सुनो टालमी, जिसे दुनिया से संतुष्टि न हुई अब कब्र ही उसे तुष्ट करेगी।’’

सिकंदर को उच्च ज्वर रहने लगा। जीवन की सारी तपस्या जब सफल होने जा रही थी तब मृत्यु से भी भयंकर विपत्ति ने उसे घेर लिया। उच्च स्वर में सैनिकों को आदेश देने वाली, कठोर कंठ से शत्रुओं को ललकारने वाली, मित्रों के बीच प्रेमिल हो जाने वाली, रोक्सानै के प्रति प्रणय निवेदन करने वाली उसकी ओजस्वी वाणी, अज्ञात कारणों से, अवरुद्ध हो गई थी। दवाइयां बेअसर थीं, हकीम हत्बुद्धि थे सिर्फ ज्वर में गति थी, वह बढ़ रहा था।

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