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जीवनी/आत्मकथा >> सिकन्दर

सिकन्दर

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :82
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10547

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जिसके शब्दकोष में आराम, आलस्य और असंभव जैसे शब्द नहीं थे ऐसे सिकंदर की संक्षिप्त गाथा प्रस्तुत है- शब्द संख्या 12 हजार...



उत्तराधिकार की लड़ाई

सिकंदर का कोई स्पष्ट और वैध उत्तराधिकारी नहीं था। अपनी आयु को देखते हुए उसने इस बारे में सोचा भी नहीं होगा। दो पत्नियों में से रोक्सानै की संतान जन्म लेने वाली थी। इतिहासकार बताते हैं कि कई साक्षियों के सामने सिकंदर ने अपनी हस्ताक्षरयुक्त अंगूठी प्रेडीकास को दी थी जो उसका अंगरक्षक और अश्वसेना का सेनानायक था। प्रेडीकास ने उत्तराधिकार का दावा नहीं किया। उसने सुझाव दिया कि रोक्सानै की भावी संतान को, यदि वह पुत्र हो, उत्तराधिकारी बनाया जाय और वह स्वयं, क्रेतारोस, लियानोतोस तथा अंतीपातर उसके संरक्षक बनें। पदाति सेना के सेनापति ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया और सुझाव दिया कि सिकंदर के सौतेले भाई फिलिप तृतीय को उत्तराधिकारी बनाया जाए। अंततः यह सहमति बनी कि सिकंदर चतुर्थ के जन्म के बाद वह और फिलिप तृतीय संयुक्त राजा बनें।

ईसा पूर्व 321 में उत्तराधिकार के सूत्रधार प्रेडीकास की हत्या हो गई। मकदूनों में शीघ्र ही झगड़े शुरू हो गए। क्षत्रपों ने अपने अधिकार बढ़ा लिए। दस वर्षों तक उत्तराधिकार की लड़ाई चलती रही, हाहाकार मचता रहा, जब तक सिकंदर का संसार चार भागों में विभक्त न हो गया। टालमी को मिस्र, सेल्यूकस को पूर्व, पर्गेमोन को लघु एशिया और फिलिप तृतीय को सिकंदर चतुर्थ के साथ मकदूनिया का राज्य मिला। परंतु फिलिप तृतीय और सिकंदर चतुर्थ की शीघ्र ही हत्या हो गई। सिकंदर की पारसीक पत्नी वारसिनी के बेटे, हारक्लीज, की ओर किसी का ध्यान नहीं था।

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