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जीवनी/आत्मकथा >> सिकन्दर

सिकन्दर

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :82
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10547

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जिसके शब्दकोष में आराम, आलस्य और असंभव जैसे शब्द नहीं थे ऐसे सिकंदर की संक्षिप्त गाथा प्रस्तुत है- शब्द संख्या 12 हजार...


व्यापार के अंतरराष्ट्रीयकरण के कारण लेन-देन में सिक्कों द्वारा एकरूपता लाने का प्रयास हुआ। व्यापारिक संपर्क में वृद्धि के फलस्वरूप भारत में यूनानी मुद्राओं के अनुकरण पर ‘उलूक थैली’ के सिक्के ढाले गए। इस प्रकार भारतीय मुद्रा निर्माण कला का विकास हुआ।

पारसीक शासन पद्धति से भारतीय पद्धति प्रभावित हुई। कला व ज्योतिष के क्षेत्र में भी भारतीयों ने यूनानियों से बहुत कुछ सीखा। मौर्य स्तभों के शीर्षकों को मंडित करने वाली पशु आकृतियों पर यूनानी कला का प्रभाव देखा जा सकता है। कालांतर में पश्चिमोत्तर प्रदेशों में गंधार-कला-शैली यूनानी कला के प्रभाव से ही विकसित हुई।

सिकंदर के अभियान से यूरोप में भारत के विषय में जानकारी बढ़ी। सिकंदर के साथ कई लेखक तथा इतिहासकार भारत आए। उन्होंने तत्कालीन भारत की राजनीतिक दशा के विषय में लिखा। सिकंदर के आक्रमण की तिथि (ईसा पूर्व 326) ने प्राचीन भारत के तिथिक्रम की अनेक गुत्थियों को सुलझा दिया। इस तिथि ने भारत के क्रमागत इतिहास को लिखने में बड़ी सहायता पहुंचाई। पवन इतिहासकारों के लेखन से हमें पंजाब और सिंधु की तत्कालीन परिस्थितियों का बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त होता है। इससे प्राचीन इतिहास के निर्माण में बड़ी सहायता मिली है।

परंतु इन प्रभावों के बावजूद भारतीय सभ्यता और संस्कृति का मूल पूर्णतया अप्रभावित रहा। इस संबंध में अंग्रेजी कवि मैथ्यू आरनाल्ड का विचार भी जान लें-‘‘पूर्व (भारत) झंझा (विदेशी आक्रमण) के सामने धीर गंभीर घृणा से नतमस्तक हुआ। सेना का गर्जन निकल जाने के बाद वह (भारत) पुनः विचार सागर में निमग्न हो गया।‘‘

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