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देवकांता संतति भाग 1

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2052

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''तुम ही अन्तर्राष्ट्रीय अपराधी के नाम से विख्यात हो?''

''बिल्कुल हूं।'' अलफांसे बोला- ''लेकिन आप लोगों को मेरे बारे में कैसे पता?''

''तो तुम यहां कैसे आ गए?'' एक ने प्रश्न किया।

चमत्कृत रह गया अलफांसे।

जो एकदम असाधारण था, वह एकदम हो गया। पलक झपकते ही उन चारों व्यक्तियों में से एक ने फुर्ती के साथ तलवार निकाली और केवल एक क्षण के लिए उसकी तलवार हवा में चमकी और क्षण मात्र में उसने अलफांसे से प्रश्न करने वाले अपने ही साथी की गर्दन धड़ से अलग कर दी। उसकी गरदन और धड़ एक पल अलग होकर तड़पे और शान्त हो गए।

सनाक - सनाक.....

शेष बचे हुए दो व्यक्तियों ने भी तलवारें खींच लीं। पैंतरा बदलकर तीनों अलग-अलग दिशाओं में फैल गए।

''इसे मैं गिरफ्तार करूंगा।'' वह बोला, जिसने अपने एक साथी की गर्दन उड़ा दी थी।

''इतने खूबसूरत नहीं हो तुम।'' एक अपनी तलवार को लहराता हुआ बोला- ''ये मेरा शिकार है।''

''तुम दोनों के धड़ मैं एक ही पल में अपनी तलवार से अलग कर दूंगा।'' तीसरा भी पैंतरा बदलकर बोला- ''किसकी ताकत है जो गुलशन के होते उसके शिकार पर आंख भी उठा सके।''

अलफांसे - बेहद अवाक था-चमत्कृत!

उसकी समझ में नहीं आया कि उसका नाम सुनते ही वे एक-दूसरे के दुश्मन कैसे बन गए। अलफांसे मूर्ख-सा उन्हें देखता रह गया और उनमें तलवारी जंग छिड़ गई। अलफांसे दीवार के सहारे चुपचाप खड़ा सारी स्थिति को समझने का प्रयास कर रहा था।

तीनों एक-दूसरे पर घातक हमले कर रहे थे।

एकाएक अलफांसे को न जाने क्या सूझा - उसने मृत व्यक्ति की म्यान से तलवार खींच ली। तलवार सम्भालकर वह दरवाजे की ओर बढ़ा, किन्तु तभी तीनों में से एक तलवार लेकर उसके सामने आ गया-''कहां जाते हो?''

''तुम मूर्खों से दूर।'' अलफांसे ने कहा।

बाकी दोनों एक-दूसरे से लड़ने में व्यस्त थे।

''ठहरो!'' उसी समय कमरे में एक अन्य आवाज गूंजी। अलफांसे के साथ-साथ चौंककर तीनों ने दरवाजे की ओर देखा-वहां एक सफेद नकाबपोश खड़ा था। उनमें से एक ने गुर्राकर पूछा-''कौन हो तुम?''

''मेरा परिचय चाहते हो?'' सफेद नकाबपोश ने कहा-''मैं ये हूं।'' कहने के साथ ही उसने पत्थर का बना एक छोटा-सा बन्दर आगे कर दिया - पत्थर का ये बन्दर ठीक इस-प्रकार का था, जैसे बच्चों के खेलने का खिलौना।

बन्दर को देखते ही तीनों के मुंह से एक भयानक चीख निकल गई।

अलफांसे को लगा, जैसे उसके दिमाग की समस्त नसें कांप रही हैं। पत्थर के उस बन्दर में उसे किसी प्रकार की विशेषता नजर नहीं आ रही थी, किन्तु वे तीनों इस प्रकार कांप रहे थे, मानो नकाबपोश के हाथ में रिवॉल्वर हो।

० ० ०

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