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देवकांता संतति भाग 1

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2052

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

अलफांसे को यह विश्वास हो गया था कि यहां कोई बहुत गहरा षड्यंत्र पनप रहा है। इस षड्यंत्र की तह तक पहुंचने का उसने निश्चय भी कर लिया था। सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो ये थी कि यहां पनपने वाले षड्यंत्र में उसे अपना व्यक्तिगत मामला भी नजर आया था। इसलिए उसने मामले की तह तक पहुंचने का दृढ़ निश्चय भी कर लिया था। इस थोड़े से समय में ही उसने ये भी जान लिया था कि यहां के लोग बेहद चालाक भी हैं। उसे और दुश्मनों का पता नहीं था, अत: उसने सोच समझकर एक-एक कदम उठाने का निश्चय कर लिया था।

''लेकिन उसने मुझे अपने हाथों से कत्ल करने की कसम क्यों खाई है?'' अलफांसे गुर्राया।

''मैं आपको सब प्रश्नों का...।'' बागीसिंह ने कहना चाहा।

''मिस्टर बागी।'' अलफांसे उसकी बात को बीच में ही काटकर गुर्राया-''जो बताना है, यहीं.. इसी समय बताओ.. बिना तुम्हारे विषय में विस्तृत रूप से जाने मैं तुम्हारे साथ नहीं जाऊंगा.. साथ ही तुम्हें भी नहीं जाने दूंगा।'' अलफांसे मार-पीट का पूरा निश्चय कर चुका था।

'यहां खतरा...!''

''अलफांसे खतरों से डरता नहीं है।'' वह गुर्राया-''या तो सीधे ढंग से बोलो, वरना मुझे दूसरे ढंग भी आते हैं।''

''वाकई आप बहुत विचित्र हैं मिस्टर अलफांसे।'' बागीसिंह ने कहा- ''अगर आपकी यही शर्त है तो संक्षेप में सुनिए - जहां तक मेरी जानकारी है, आपकी मां भारतीय थी और पिता अंग्रेज। आपकी मां का नाम प्रभा था और पिता का नाम जेम्स। ये उस समय की बात है, जब भारत पर अंग्रेजों का शासन था। उस समय यहां का राजा देव था.. उसका पूरा नाम देवसिंह है। यहां का सम्राट बेहद विलासी या.. मुझे कहते हुए भी शर्म आती है.. कि वह आपकी मां प्रभा पर अपनी वासनामयी दृष्टि रखता था। उधर आपकी मां.. आपके पिता से प्रेम करती थी। यह देवसिंह का दावा था जिस लड़की पर उसकी दृष्टि पड़ जाती है.. वह एक बार उसके बिस्तर-की शोभा अवश्य बनती है, किन्तु आपकी मां पहली लड़की थी, जिसने सम्राट देवसिंह के दावे को झूठा किया और आपके पिता जेम्स से शादी कर ली।

''देवसिंह की दृष्टि में यह उसकी शान में बहुत बड़ी गुस्ताखी थी। शहनशाह के होते हुए एक साधारण आदमी - उस वस्तु को ले जाए, जिसे स्वयं शहनशाह पसन्द कर चुका है, यह देवसिंह को गवारा न हो सका और उसने आपके पिता की हत्या के लिए एक गहरे षड्यंत्र की रचना की। लेकिन इन्सान के करने से होता क्या है - होता तो वही है जो ईश्वर पहले से हमारे भाग्य में लिख चुका है - पासे कुछ इस तरह उलटे कि आपके पिता को उस षड्यंत्र का पता लग गया और उन्होंने अपनी बुद्धि से देवसिंह द्वारा बिछाए गए जाल को अपनी बौद्धिक शक्ति से तोड़ दिया, किन्तु आपके पिता भी यह समझ चुके थे कि सम्राट देवसिंह सरलता से उनका पीछा नहीं छोड़ेगा। अत: उन्होंने निश्चय कर लिया कि सांप का फन जहर उगलने से पहले ही कुचल देना चाहिए। देवसिंह ने यहां का शासन राजा देवेन्द्रसिंह को परास्त करके प्राप्त किया था। देवेन्द्रसिंह यहां का शासन प्राप्त करने के लिए पुन: गुप्त ढंग से अपनी 'शक्ति जुटा रहा था। वास्तविकता ये थी कि देवसिंह एक साधारण चित्रकार था और उसने बहुत बड़े षड्यंत्र के साथ देवेन्द्रसिंह को परास्त कर यहां का शासन प्राप्त कर लिया था। देवेन्द्रसिंह के माथे पर यह भी कलंक था कि एक साधारण व्यक्ति ने उनसे राज्य छीन लिया। अपनी शक्ति जुटाकर वे देवसिंह से अपना शासन मुक्त करके अपने मस्तक पर लगे कलंक को धोना चाहते थे। उधर आपके पिता देवसिंह का फन कुचलने हेतु कटिबद्ध हो चुके थे। इस बात में कोई सन्देह नहीं है कि आपके पिता की बौद्धिक शक्ति आश्चर्यजनक थी। उन्होंने तुरन्त अवसर का लाभ उठाया और देवेन्द्रसिंह से जा मिले.. जो देवेन्द्रसिंह अपना खोया हुआ राज्य प्राप्त करने हेतु शक्ति जुटा रहा था.. उसे आपके पिता ने एक गहरी योजना बताई और शासन पुन: देवेन्द्रसिंह के हाथ आ लगा। आपके पिता ने देवेन्द्रसिंह से यही कहा था कि विजय की स्थिति में तुम सम्राट बन जाओगे, लेकिन देवसिंह को मैं अपने हाथों से मौत के घाट उतारूंगा। वही हुआ भी.. देवसिंह को आपके पिता ने स्वयं अपनी कटार का शिकार बनाया, किन्तु उनका एक राज ज्योतिषी जो ऐयारी के फन में भी माहिर था.. देवसिंह के लड़के गौरवसिंह और वन्दना को लेकर फरार हो गया। आपके पिता अथवा देवेन्द्रसिंह में से किसी ने भी इस बात की कोई विशेष चिन्ता नहीं की.. आपके पिता अपने दुश्मनों को परास्त करके आपकी मां के साथ यहां से चले गए देवेन्द्रसिंह ने अपना शासन सम्भाल लिया, वक्त गुजरा, देवसिंह समाप्त हो ही चुका था.. अत: प्रत्येक चिन्ता से मुक्त शासन चलता रहा। वक्त ने देवेन्द्रसिंह को बुढ़ापे से मिलाया। उनका इकलौता पुत्र दलीपसिंह बड़ा हुआ और देवेन्द्रसिंह की मृत्यु के बाद परम्परागत सम्राट की गद्दी पर वह बैठा।

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