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देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

इस प्रकार अर्जुनसिंह क्रोध से भुनभुनाते रहे। धीरे-धीरे बह समय आ गया जिस समय कल पिशाच उन्हें सही स्थान पर मिला था। ठीक समय ऐसी आहट हुई कि जैसे कोई क्रोध में पैर पटकता हुआ आ रहा हो और अगले ही क्षण पिशाच कमरे के दरवाजे पर दिखाई दिया और उसका चहरा क्रोध से तमतमाया हुआ था। जो अर्जुनसिंह ने कहा था, वही हुआ। पिशाच गुर्राया-''मेरे साथ इतना बड़ा धोखा!''

क्रोध में अर्जुनसिंह ने अपनी म्यान से तलवार खींच ली - और गरजे---''सीधी तरह बता कमीने! मेरी फूल-सी बेटी कहां पर है? वर्ना एक ही सायत में तेरा सर कलम कर देंगे - बहुत हो चुकी तेरी ऐयारी! अब हमारी तलवार का सामना करना होगा।''

'बहुत खूब!'' व्यंग्यात्मक ढंग से मुस्कराता हुआ बोला पिशाच--''पहले चोरी फिर ऊपर से सीना-जोरी।''

'यही कहेगा ना पापी कि हमने नकली प्रगति दी थी!'' तलवार तानकर गुर्राए अर्जुनसिंह।

'और नहीं तो क्या?'' पिशाच एकदम अविचलित स्वर में बोला- ''तुमने होशियारी दिखाते हुए मुझे नकली प्रगति दी-तुम क्या जानो तुम पर विश्वास करके पिशाच को कितना बड़ा अपमान सहना पड़ा! मैंने तो कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि तुम मेरे साथ धोखा करोगे। जैसे ही उमादत्त ने उसके मुख पर चूर्ण मलवाया, तुम्हारे धोखे का रहस्य मुझ पर खुल गया।

''उमादत्त क्या जानता था कि मैं प्रगति को तुमसे मांगकर लाया हूं उसने तो यही समझा कि मैंने उससे धोखा किया है। उसने मुझे अपमानिन करके महल से निकाला। मेरा ये अपमान तुम्हारे कारण हुआ है - मैं इसका बदला तुमसे लूंगा - तुमने मेरे साथ धोखा किया है।''

''जबान सम्भालकर बात कर, पापी।'' अर्जुन चीखा-''हम ऐयार हैं, ऐयारी के नाम पर कलंक नहीं। अब तेरा यह नाटक हमारे सामने नहीं चलेगा, सीधी तरह बता कि प्रगति कहां है?''

''ये सब बकवास है...।'' पिशाच भी एकदम अपनी म्यान से तलवार खींचता हुआ बोला- ''तुमने मुझे धोखा दिया है!''

''इसका मतलब, नहीं बताओगे कि तुमने मेरी बेटी को कहाँ रखा है?''

अर्जुनसिंह का क्रोध सातवें आसमान पर पहुंचता जा रहा था-''ये याद रख पिशाच कि अगर प्रगति का पता नहीं लगा तो मैं तेरे पूरे खानदान को खत्म कर दूंगा।''

''अपने दिमाग से यह बात निकाल दो कि मैंने तुमसे किसी प्रकार का धोखा किया है।'' पिशाच बोला-''मैं उसकी कसम खाकर कहता हूं. जो इस दुनिया में मुझे सबसे अधिक प्यारा है। मैंने तो तुम्हारे साथ कोई धोखा नहीं किया है। मैं उसी प्रगति को उमादत्त के पास ले गया था, जो तुमने मुझे दी थी।''  अर्जुनसिंह का तलवार वाला हाथ पिशाच पर वार करने के लिए उठा ही था कि उसके शब्द सुनकर हवा में ही ठिठक गया। उसने ध्यान से पिशाच के चेहरे की ओर देखा और बोले-''मैं भी कसम खाकर कहता हूं कि मैंने तुम्हारे साथ कोई धोखा नहीं किया है।''

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