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देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

अर्जुनसिंह ने पिशाच की बात का समर्थन किया, बोले--''ठीक है -- हम इसे तहखाने में डालते हैं।''

'आप इसे तहखाने में डालकर आइए।' पिशाच बोला, जब तक मैं खण्डहर के आसपास बालादवी करके देखता हूं कि कहीं दलीपसिंह का कोई ऐयार हमारी कार्यवाही तो नहीं देरव्र रहा है।'' अर्जुनसिंह को पिशाच का विचार उपयुक्त लगा और उन्होंने इजाजत दे दी। अर्जुनसिंह तहखाने का दरवाजा खोलने लगे और पिशाच खण्डहर से बाहर आया। कनखियों से वह बराबर पीछे देख रहा था कि कहीं अर्जुनसिंह उस पर नजर तो नहीं रखे हुए हैं। जब उसे यकीन हो गया कि किसी की दृष्टि उस पर नहीं है तो उसने जाफिल बजाई।

उसके जाफिल बजाते ही एक आदमी घनी झाड़ियों में से निकल कर उसके पास आया।

'सारा नाटक सफल हो गया।'' पिशाच ने धीरे से उस आदमी के कान में कहा - ''हमारे वहां से जाने के बाद बारूसिंह को यहां से निकाल लेना।''

''ठीक है उस्ताद।' उस आदमी ने गरदन हिलाई- ''नानक और प्रगति को हमने ठिकाने पर पहुंचा दिया है।'' यह सन्देश देने के बाद एक क्षण के लिए भी वह आदमी पिशाच के सामने न खड़ा रहा! जिस प्रकार वह निकला था, उसी प्रकार झाड़ियों में गुम हो गया। पिशाच इस तरह आगे बढ़ गया, मानो अभी-अभी उसने किसी से कोई बात की ही न हो। वह अभी लगभग पचास गज दूर ही आया होगा कि अचानक एक दृश्य देखकर पिशाच बुरी तरह घबरा गया। पिशाच का सारा जिस्म भय से कांप गया। चेहरे पर पसीना उभर आया। हाथ-पैर ढीले पड़ गए। चमकीली आंखों में मौत की परछाइयां नृत्य करती नजर आने लगीं। सामने के दृश्य को देखकर पिशाच इस तरह घबरा गया, मानो उसके ठीक सामने साक्षात् मौत खड़ी हो। उसे यकीन हो गया कि किसी भी हालत में अब वह जीता नहीं बचेगा।

हम पाठकों को उस दृश्य के बारे में बताएं तो पाठक आश्चर्य करेंगे।

क्योंकि वह दृश्य जरा भी भयानक नहीं था। पिशाच के ठीक सामने धरती पर एक लाल सुर्ख टमाटर रखा था। उस टमाटर के नीचे किसी हाथ से लिखे कागज का पुर्जा दबा हुआ था। बस-इतना-सा ही दृश्य था, जिसे देखकर पिशाच की हालत बहुत बुरी हो गई थी। कांपता हुआ वह जमीन पर रखे उस लाल सुर्ख टमाटर की ओर बढ़ा। टमाटर उठाने के लिए उसने हाथ बढ़ाया - पर हाथ कांप गया पिशाच का। उसने टमाटर में जोर से ठोकर मारी - टमाटर दूर जा गिरा और फूट गया। कांपते हाथों से पिशाच ने वह कागज का पुर्जा उठाया और पढ़ा-

पिशाचनाथ,

ऐसे नीच काम करते समय आखिर तुझे टमाटर का ख्याल क्यों नहीं आता!

बस इतना ही लिखा था कागज पर और इसे पढ़कर पिशाच का सारा शरीर पसीने से नहा उठा - इस वक्त वही पिशाच बुरी तरह घबराया हुआ और भयभीत था, जिसने कुछ ही देर पूर्व अर्जुनसिंह को बहुत जबरदस्त धोखा दिया था! इस कागज को पढ़ने के बाद पिशाच घबराया-सा जंगल में इधर-उधर देख रहा था। उस समय तो पिशाच का दिल दहल उठा, जब उसके आसपास ही जंगल में छुपा हुआ कोई आदमी बहुत जोर से हंस पड़ा। यह हंसी बड़ी भयानक थी और पिशाच तो इसे सुनकर कांप उठा था, फिर पिशाचनाथ के कान में एक आवाज पड़ी।

और---यह सुनकर तो पिशाचनाथ की आंखों के समक्ष जैसे अंधेरा होने लगा। दिल कांप रहा था। अभी तक ऐयारों में शेर नजर आने वाला पिशाच इस समय चूहा नजर आ रहा था। जंगल में गूंजती एक आदमी की हंसी मानो उसके कानों के पर्दे फाड़ डालना चाहती थी।

 

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