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देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

'आप-आप तो अभी गुलबदन को लेकर अन्दर गए थे ?''  उनमें से एक लौंडी आश्चर्य से बोली।'

''हम नहीं-वह दुश्मन का ऐयार विक्रमसिंह है।'' बख्तावरसिंह  ने झल्लाकर कहा और पांच सिपाही तथा तीन दासियों को सा थ लेकर, चेहरे पर नकाब डाला और उस कमरे में चला गया, जहां बख्तावरसिंह, बने हुए विक्रमसिंह का रहस्य खोलता है। यह घटना आप (पहले भाग के नौवें बयान में) पढ़ सकते हैं। फिर भी यहां हम लिख दें कि विक्रमसिंह बख्तावर को चंद्रप्रभा और रामरतन नाम के दो आदमियों से डराना चाहता  है, मगर इस बार उसने केवल नाम से डरवाया नहीं, बल्कि बटुए से एक कागज भी निकालकर विक्रमसिंह को पढ़ाया। उसे पढ़ते ही विक्रम बेहोश होकर गिर गया।  अब हम पाठकों को उससे आगे का किस्सा सुनाते हैं।   

''मूर्ख-चला था बख्तावरसिंह को धमकाने।'' बख्तावरसिंह  उसके बेहोश होने पर बोला। गुलबदन सहित सभी दृश्य को आश्चर्य के  साथ देख रहे थे। बेहोश होने के साथ ही विक्रमसिंह के हाथ से वह  कागज छूट गया था, जिसे पढ़कर उसकी यह दशा हुई। कमरे में मौजूद हर आदमी की जिज्ञासा उस कागज को पढ़ने की थी। सब यही जानना  चाहते थे कि ऐसा उस कागज में क्या लिखा है कि विक्रमसिंह बेहोश हो  गया।

''पिताजी।'' गुलबदन अपना संयम तोड़कर बोला-''इस कागज में ऐसा क्या लिखा है?''

'इस कागज को यहीं पढ़कर तुम सबको सुनाओगे।'' बख्तावरसिंह ने कहा---''इसे होश में लाया जाए!'' गुलबदन ने तुरंत पिता की आज्ञा का पालन किया और विक्रमसिंह को लखलखा सुंघाकर होश में लाया गया। जब वह खड़ा हो गया तो बख्तावरसिंह बोला-''क्यों.. इतने से ही घबराकर बेहोश हो गए.. तुमने तो मेरी लड़की और जंवाई को न जाने कब से गिरफ्तार कर रखा है।''

''अभी रामरतन और चंद्रप्रभा जीती हैं बख्तावरसिंह।'' विक्रम बोला-''तुम चाहो तो मैं सचमुच उन्हें बचाकर ला सकता हूं।''

''अब तो तेरा बाप भी लाएगा विक्रमसिंह, लेकिन ये बातें बाद में होंगी।'' बख्तावर सख्त स्वर में बोला- ''यहां पर मौजूद सभी लोग उस कागज को पढ़ने के लिए उत्सुक हैं, जिसे पढ़कर तुम इस हालत तक पहुंचे हो

जरा एक बार वह कागज पढ़कर सुना दो।''

आदेश का पालन कुरते हुए विक्रमसिंह ने कागज पढ़कर सुनाया... लिखा था-

प्राणनाथ विक्रमसिंह,

वैसे तो आप लिखाई पहचान रहे होंगे, किन्तु फिर भी लिख दूं कि यह पत्र मैं तुम्हारी पत्नी चंदा लिख रही हूं। लिख क्या रही हूं बल्कि यह पत्र बख्तावरसिंह नामक एक आदमी मुझसे जबरदस्ती तिखवा रहा है। यह तो हमें अब पता लगा है कि इस आदमी का नाम बख्तावरसिंह है। पहले-पहल यह हमारे घर रूपलाल के भेष में आया था। मुझे और मुन्नी को धोखा देकर यहां ले आया। इसने हमें बेहोश कर दिया था, अत: हम नहीं जानते कि इस समय हम कहां हैं--आंख खुली तो हमने खुद को यहां कैदखाने में पाया और अब यह मुझसे पत्र लिखवा रहा है। मेरे बराबर में ही कुंती बैठी है। हम दोनों ही इस समय इसके कब्जे में हैं। जो यह कहे, आप कर दें, वर्ना यह खतरनाक आदमी हमें जिन्दा नहीं छोड़ेगा, वैसे अभी तक इसने हमें कोई कष्ट नहीं दिया है।

तुम्हारी धर्मपत्नी - चंदारानी। 

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