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देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

क्या वे ही...बख्तावरसिंह की लड़की और जंवाई? पिशाच ने कहा।

हां...तुम जानते हो कि बख्तावरसिंह आज से दो साल पहले हमारा ही साथी -- यानी राजा उमादत्त का ऐयार था। क्योंकि राजा उमादत्त का दारोगा होने के साथ-साथ मैं उनका साला भी हूं इसलिए वे सबसे अधिक मेरी बात मानते हैं तीन साल पहले न जाने किस कमीने ने मेरी बहन कंचन की हत्या कर दी, उसके बाद उमादत्त मेरी बात के सामने बख्तावरसिंह की बात को अधिक महत्व देने लगे। धीरे-धीरे मेरी स्थिति बख्तावरसिंह लेता जा रहा था। मुझे यह बात बड़ी बुरी लगी और मैँने ऐसा षड्यंत्र रचा कि उमादत्त की नजरों से बख्तावर को गिरा दिया, साथ ही उसे राज्य से निकलवा दिया। और फिर उमादत्त ने उसे अपने ऐयार के पद से वंचित कर दिया।'

क्या तुम मुझे षड्यंत्र नहीं बताओगे जो तुमने बख्तावरसिंह के विरुद्ध रचा था ?' पिशाच ने कहा।

ये तो तुम जानते ही हो कि - उमादत्त और गौरवसिंह की वहुत पुरानी दुश्मनी है।' मेघराज ने बताया - 'हालांकि इस समय गौरव किसी राज्य का राजा नहीं है - किन्तु फिर भी वह उमादत्त से कम शक्तिशाली नहीं है। उसका ख्याल है कि अगर किसी प्रकार गौरव उसके कब्जे में आ जाए तो वह सारे झंझटों से मुक्त हो जाए। उन दिनों बख्तावरसिंह उमादत्त का सबसे अधिक समझदार एवं विश्वसनीय ऐयार था, अत: यह कठिन काम उमादत्त ने बख्तावरसिंह को ही सौंपा और बख्तावरसिंह को फंसाने के लिए मेरे पास-एक अत्यंत ही उपयुक्त अवसर था। बख्तावरसिंह को क्या मालूम था कि दिल-ही-दिल में मेरे अन्दर उसके प्रति कालिख है? उमादत्त का साला और दारोगा होने के कारण वह मेरी इज्जत करता था। उसे स्वप्न में भी उम्मीद नहीं थी कि मैं उसके साथ बहुत बड़ी ऐयारी खेलने जा रहा हूं। जब वह मेरे पास राय लेने आया तो मैंने कहा- 'गौरवसिंह आसानी से तो हमारे हाथ आ नहीं सकता!' इस पर बख्तावरसिंह ने कहा- 'तभी तो मैं आपके पास आया हूं.. मुझे कोई ऐसी तरकीब बताइए जिससे मैं गौरवसिंह को फंसा सकूं।''

तुम एक काम करो।' मैंने उसे राय दी-- 'तुम कालागढ़ के जंगल में जाओ... वहां अक्सर गौरवसिंह जाया करता है। तुम उससे दुश्मन की तरह नहीं, बल्कि दोस्त की तरह मिलो.. तुम उससे कहो कि तुम राजा उमादत से अन्दर-ही-अन्दर जलते हो और उसका राज्य हड़पना चाहते हो.. इस काम में मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है। वह खुद उमादत्त का दुश्मन है.. इसके लिए वह एकदम तैयार हो जाएगा और उसका विश्वास प्राप्त करके तुम किसी भी प्रकार उसे उमादत्त के महल में ला सकते हो। हम अपनी योजना के अनुसार महल में दाखिल होते ही गौरव को गिरफ्तार कर लेंगे और उमादत्त के सामने ले जाएंगे। इसके बाद उमादत्त जाने और उसका काम।'

'मेरी यह योजना बख्तावर को जम गई।' मेघराज पिशाच को अपना षड्यंत्र बताता हुआ बोला - 'बख्तावरसिंह के जाते ही मैं अपने एक सैनिक को अपने साथ लेकर राजा उमादत्त के पास जाकर बोला, “तो आपने बख्तावर को गौरव वाला काम सौंपा है?”

क्यों.. क्या इस काम के लिए हमारे पास बख्तावर से अच्छा कोई ऐयार है ?' उमादत्त ने मुझसे मुस्कराते हुए पूछा।

आप - असलियत सुनेंगे तो चौंक पड़ेंगे।' मैंने कहा- 'हमारी रियासत में बख्तावरसिंह से बड़ा कोई गद्दार नहीं है।'

क्या बकते हो, मेघराज?' उमादत्त मुझ पर भड़क पड़े -- 'बख्तावरसिंह और गद्दार!'

जी हां। मैंने कहा-- 'वास्तविकता ये है कि वह आपका राज्य हड़पना चाहता है वह गौरवसिंह से मिलकर आपके खिलाफ कार्यवाही कर रहा है। आपको दिखाने के लिए यह यहां गौरवसिंह को पकड़कर लाएगा। यह काम वह केवल आपको खुश करने के लिए करेगा, वास्तविकता ये है कि वह गौरवसिंह से मिला हुआ होगा और वह यहां नकली गौरवसिंह को लाएगा।'

ये हम नहीं मान सकते!' एकदम बिगड़कर बोले उमादत्त- 'बख्तावर हमारे साथ इतना बड़ा धोखा नहीं कर सकता।'

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