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देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

तुम शायद खूनी घाटी की वह घटना भूल गए हो।' रामरतन मुस्कराकर बोला- 'उस कलमदान को याद करो मेघराज जो तुमने खूनी घाटी में ही छोड़ दिया था। अगर मैं उस कलमदान का रहस्य खोल दूं तो राज्य के वे सैनिक जो इस समय तुम्हारे साथ मिलकर राजा उमादत्त के साथ गद्दारी करने के लिए तैयार हुए हैं --- तुम्हें ही कच्चा चबा जाएंगे। इस कलमदान का रहस्य खुलते ही तुम्हारे साथ एक भी आदमी साथ देने के लिए न रहेगा और साथ ही तुम्हें सब मिलकर मार डालेंगे। फिर तुम्हारे राजा वनने के ख्वाबों का तो बिल्कुल पता भी नहीं चलेगा।'

कलमदान के बारे में सुनते ही मैं बुरी तरह से घबरा गया, जैसे ही रामरतन ने खूनी घाटी का नाम लिया था -- तो फिर मेरी समझ में सबकुछ ही आ गया था - मगर फिर भी मैंने स्वयं पर संयम रखकर रामरतन से पूछा- 'तुम्हें वह कलमदान कहां से मिला?'

खूनी घाटी से ही।' रामरतन ने कहा।  - 'और तुम उसका रहस्य कैसे जानते हो?'' मैंने उससे अगला प्रश्न किया।

'अब क्या तुम ये समझते हो कि मैं तुम्हारे सब सवालों का जवाब देता चला जाऊंगा?' रामरतन अकइकर बोला- 'मैं तुम्हारे सामने उस कलमदान का जिक्र कर रहा हूं - इसी से स्पष्ट है कि मैं कलमदान के सभी रहस्यों से वाकिफ हूं और यह चेतावनी भी देता हूं कि अगर तुमने कल उमादत्त के खिलाफ कोई भी कदम उठाने की कोशिश की तो मैं उस कलमदान का रहस्य खोल दूंगा।''

क्या तुम वह कलमदान किसी कीमत पर मुझे लौटा नहीं सकते ?' मैंने उससे पूछा।

लौटा सकता हूं!' रामरतन ने कहा- केवल एक सूरत है, जिससे मैं तुझे वह कलमदान लौटा सकता हूं और वह ये कि, पहले मैं अपनी तलवार से तेरा धड़ उड़ा सकूं। तुझसे मुझे बहुत बड़ा बदला लेना है। तूने मेरे ससुर को एक गहरी साजिश में फंसाकर न केवल राजा उमादत्त की नजरों में गिरा दिया - बल्कि उन्हें राज्य से बेइज्जत करके निकलवा दिया। जो इल्जाम तूने उन पर लगाया था, वह नीच कर्म तू खुद करने जा रहा है - मगर मैं तुझे कभी सफल नहीं होने दूंगा - जब भी तू ऐसा करेगा, वह कलमदान तेरी मौत बन जाएगा।'

'लेकिन मैं अगर इसी समय तुझे गिरफ्तार करके तुझसे कलमदान प्राप्त कर लूं तो मेरे अलावा तुम किसी और को कैसे दिखा सकोगे?'

'मैं इतना मूर्खराज नहीं हूं मेघराज।' रामरतन जहरीली मुस्कान के साथ बोला- 'मैं यहां तुम्हारे पास कलमदान लेकर नहीं आया हूं - बल्कि कलमदान मेरी पली चंद्रप्रभा के पास है। अगर तुमने मुझे गिरफ्तार करने की कोशिश की तो कुछ ही देर बाद कलमदान उमादत्त के पास होगा।'

मैं उसके इस वाक्य से समझ गया कि चंद्रप्रभा भी महल के अन्दर ही कहीं उपस्थित है। यह मैं जान चुका था कि कलमदान उनके पास है और यह भी स्पष्ट था कि मेरी उनसे दुश्मनी है। इस दुश्मनी का बदला लेने के लिए वे कलमदान का प्रयोग जरूर करेंगे और अगर उसका रहस्य प्रकट हो गया तो या तो मैं राज्य की जनता द्वारा ही मार दिया जाऊंगा अथवा आत्महत्या के अतिरिक्त कोई दूसरा चारा न रहेगा। यही सोचकर मैंने हिम्मत से काम लिया, और तत्क्षण ताली बजा दी। रामरतन को उसी समय गिरफ्तार कर लिया गया। मैंने फौरन सैनिकों को आदेश दे दिया कि कहीं भी महल के अन्दर कोई संदिग्ध आदमी मिले तो तुरन्त गिरफ्तार कर लिया जाए। मेरे सैनिक एकदम क्रियाशील हो उठे----और महल के अन्दर से नकाब डाले एक आदमी और पकड़ा गया, जो वख्तावरसिंह की लड़की चंद्रप्रभा थी।

मगर उस समय मेरे होश उड़ गए - जब उन दोनों की लाख तलाशी लेने पर भी मुझे कलमदान नहीं मिला। अब कलमदान के कारण मुझे अगले दिन बगावत करने का इरादा स्थगित कर देना पड़ा। मैंने उनसे कलमदान के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा- 'हम जानते थे कि यह वक्त भी आ सकता है। हम कलमदान नहीं लाए - बल्कि एक ऐसे आदमी को सौंप आए हैं, जो केवल कलमदान को दरबार में उसी समय पेश करेगा, जब तुम उमादत्त का तख्ता पलटकर स्वयं राजा बनोगे।'

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