लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 2

देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053

Like this Hindi book 0

चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

उसने देखा कि यह दरवाजा एक गैलरी में खुलता था - दरवाजे के बीच में ही खड़े-खड़े उसने भली प्रकार गैलरी का निरीक्षण किया। गैलरी दाएं-बाएं, दूर-दूर तक चली गई थी - गैलरी का फर्श काले और सफेद संगमरमर के चौकोर पत्थरों का बना हुआ था। हर पत्थर एक हाथ लम्बा और एक हाथ चौड़ा था - यानी आदमी एक पत्थर पर आराम से पैर रख सकता था, चौकोर पत्थर इस हिसाब से लगे हुए थे कि एक काला, और सफेद, फिर एक काला और सफेद - सारी गैलरी के फर्श पर काले व सफेद रंग के चौकोर पत्थर इसी क्रम में लगे थे। ये तो बांड देख ही रहा था इसमें आश्चर्य की बात नहीं थी - किन्तु आश्चर्य की बात यह थी कि गैलरी की दाई-बाई दीवारों के साथ-साथ एक-एक हाथ की दूरी पर सात-सात लम्बे संगमरमर के आदमी खड़े थे। उनके हाथ गैलरी में आगे को फैले हुए थे। भिन्न आदमियों के हाथों में भिन्न प्रकार के अजीब-से हथियार थे - मुगदर, थपकी, डंडा, तलवार, बर्छा इत्यादि अनेक किस्म के हथियार। यह दृश्य जेम्स बांड को बड़ा विचित्र-सा और आकर्षक लगा। मगर वह यह नहीं समझ सका कि गैलरी की यह बनावट क्यों है।

उसने निश्चय किया कि उसे इसी गैलरी में आगे बढ़ना चाहिए।

इस निश्चय के साथ उसने अभी अपना पहला पैर गैलरी में रखा ही था कि संगमरमर का एक आदमी विद्युत गति से उस पर झपटा। बांड को इतना अवसर ही नहीं मिला कि वह सम्भल सके। संगमरमर के उस आदमी के हाथ में दबा डंडा बांड के सिर पर पड़ा - उसके जिस्म में तेज झनझनाहट की एक ऐसी लहर दौड़ गई, मानो विद्युत के नग्न तार उसके जिस्म से स्पर्श करा दिए गए हों।

उसने स्वयं को सम्भालने की लाख चेष्टा की, मगर सम्भाल नहीं सका और बेहोश हो गया।

सावधान! अब हम पाठकों को एक ऐसे रहस्य के नजदीक ले जा रहे हैं, जिसमें पाठक निश्चय ही उलझकर रह जाएंगे -- अब आप जरा अपने धड़कते दिल पर काबू पाइए और उस रहस्य को जानिए। आइए.. हम बांड के साथ उस रहस्य से उलझते हैं और बांड के साथ खुद भी आश्चर्य के सागर में गोते लगाते हैं.. वो देखिए - बांड की चेतना वापस लौट रही है।

ध्यान से देखिए - वह हल्के-हल्के कराह रहा है। बेशक ! उसके सिर पर डंडे की काफी सख्त चोट लगी है। उसने कराहकर नेत्र खोल दिए। यह देखकर वह आश्चर्यचकित रह गया कि वह जहां बेहोश हुआ था, इस समय वहां नहीं है.. बल्कि किसी दूसरे स्थान पर है। अचानक बांड ने एक दृश्य देखा और इस प्रकार उछल पड़ा, मानो हजारों बिच्छुओं ने उसे एक साथ डंक मार दिए हों।

वह हैरत से आखें फाड़-फाड़कर उस दृश्य को देख रहा है, उसका दिल कह रहा है किं वह इस खौफनाक दृश्य पर विश्वास न करे.. किन्तु जो कठोर यथार्थ उसकी आंखों के समक्ष है, उससे भला वह विमुख कैसे हो सकता है? मगर.. मगर दिल नहीं मानता - वह कैसे विश्वास करे कि वह जो देख रहा हे वह कोई दुस्वप्न नहीं, बल्कि कठोर यथार्थ है, हकीकत है! जेम्स बांड ने तो कभी कल्पना भी नहीं की थी कि जीवन में कभी वह इतना भयानक दृश्य भी देखेग़ा। लाखों प्रयासों के पश्चात् भी उसे उस दृश्य की वास्तविकता पर विश्वास नहीं हो रहा था। हम जानते हैं कि जिस दृश्य को इस समय जेम्स बांड देख रहा है - उसे देखने हेतु पाठक भी व्यग्र हैं। हम पाठकों को अधिक देर तक इस भयानकतम दृश्य से वंचित नहीं रखेंगे। आइए, हम वह दृश्य आपको दिखाते हैं, वो देखिए।

जेम्स बांड इस समय एक बालकनी में खड़ा है। बालकनी में कई बड़े-बड़े दरवाजे हैं। बालकनी के नीचे एक लम्बा-चौड़ा खूबसूरत बाग हे। यह बालकनी बाग के बीचो-बीच में बनी इमारत की तीसरी मंजिल पर है -- इसी बालकनी में इस समय बांड खड़ा है, और उसकी आंखो के ठीक सामने - बालकनी के दरवाजों पर सात लाशें उल्टी टंगी हुई हैं अर्थात् सिर नीचे पैर ऊपर। रस्सियों के जरिए उन लाशों को उल्टी करके दरवाजों के ऊपर कुण्डों से बांधा गया है। हवा के झोंकों के साथ.. साथ वे लाशें हिल रही हैं। हिलने के साथ-साथ वहां एक भयानक सीटी-सी गूंज रही है।

बांड के इतने आश्चर्य का कारण वे सात लाशें नहीं, बल्कि केवल दो लाशें हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book