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देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''अच्छी कहानी तैयार कर रखी है सबने।'' उसके चुप होते ही पिशाचनाथ बोला- ''उमादत्त का ऐयार बनकर तुम कुछ लाभ उठाते हो। असलियत ये है कि तुम्हें पता ही नहीं था कि गुलबदन बलवंतसिंह बना हुआ है। तुम्हें इतना पता था कि बख्तावरसिंह उमादत्त की कैद में पहुंच चुका है। बख्तावरसिंह को रूपलाल ने केवल इसलिए गिरफ्तार किया था, क्योंकि राजा उमादत्त ने बख्तावरसिंह को देश निकाला दे दिया था। इसलिए रूपलाल ने बख्तावरसिंह को उमादत्त के राज्य में देखकर गिरफ्तार कर लिया - मगर उमादत्त दिल-ही-दिल में काफी पहले से बख्तावरसिंह की कमी महसूस कर रहे थे, अत: उन्होंने दरबार में उन्हें अपनाना भी चाहा, मगर उन्होंने उस इच्छा को ठुकरा दिया और इन्हें कैद में डाल दिया।

''बस - इतना ही बड़ा काम उमादत्त की जानकारी और उनकी आज्ञा से हुआ है। इससे आगे की सारी बातें मेघराज के इशारे पर हुई हैं। उमादत्त के दरबार में उस समय तुम, विक्रम और मेघराज भी उपस्थित थे। बख्तावर को तुम्हारे सामने ही कैद किया गया था। उस समय तुम नहीं जानते थे कि बख्तावरसिंह का लड़का मुकरन्द प्राप्त करने बलवंतसिंह बनकर दलीपसिंह के महल में गया हुआ है। दरबार बर्खास्त होने के बाद मेघराज ने तुम्हें अकेले में अपने घर बुलाकर यह रहस्य बताया और तुम्हें बख्तावरसिंह बनने की आज्ञा दी और यह सारे काम तुम मेघराज की ही आज्ञा से ही कर रहे हो।''

''क्या मतलब?'' एकदम चौंककर बोला विक्रमसिंह- ''तुम ये कहना चाहते हो कि मैं मेघराज से मिला हुआ हूं?''

''क्या यह गलत है?'' पिशाच व्यंग्यात्मक स्वर में बोला- ''इस तरह के नाटक से तुम हमें धोखा नहीं दे सकते, विक्रमसिंह। हमारे पास एक ऐसा सुबूत भी है जिससे तुम्हारी सारी असलियत खुल जाएगी। मगर हम ये मानते हैं विक्रम कि अगर हम यहां नहीं आ जाते तो तुम बख्तावर को धोखा अवश्य दे देते।''

''ये गलत है बख्तावर!'' एकदम चीख पड़ा विक्रम- ''इसकी बातों में मत आना। ये एक नम्बर का झूठा, जालसाज, दुष्ट और कमीना है। ऐसा ही वो दुष्ट मेघराज है। मैं तुम्हें बता चुका हूं कि अब ये दोनों मिल गए हैं। दोनों मिलकर कोई बड़ा बखेड़ा करना चाहते हैं। न जाने यह कैसे यहां पहुंच गया है। इसने हमारी बातें सुन ली हैं। यह समझ गया है कि हम दोनों दोस्त बनकर इसकी और मेघराज की साजिश असफल करना चाहते हैं। इसी सबब से यह नई-नई बात बनाकर हम दोनों में फूट डलवाना चाहता है। यह मेरे विरुद्ध वैसी ही साजिश है, जैसी कि उमादत्त की नजरों से तुम्हें गिराने के लिए मेघराज ने की थी। पिशाच का यकीन कभी मत करना - वरना जबरदस्त धोखा खाओगे।'' बख्तावर बड़ी अजीब स्थिति में फंस गया था। वह तय नहीं कर ना रहा था कि पिशाच सच्चा है अथवा विक्रमसिंह। अपने दिमाग की उलझन को सुलझाने के लिए उसने पिशाच से कहा- ''तुम्हारे पास क्या सुबूत है कि विक्रमसिंह मेघराज से मिला हुआ है?''

''पहले तो यह सोचो कि मैं यहां क्यों पहुंच गया?'' पिशाच ने कहा!

''तुमने कहा था कि तुम कहीं भी किसी भी समय पहुंच सकते हो।'' - ''लेकिन फिर भी कहीं पहुंचने का कोई-न-कोई जरिया और सबब तो होता ही है।'' पिशाच बोला- ''मुझे यहां का पता मेघराज से मिला है। जब उसने मुझे यहां भेजा, तब तक उसे यह बिल्कुल नहीं पता था कि तुम उमादत्त की कैद से भाग गए हो, तुम्हारे साथ जो भी कुछ गुजरा, वह सब खुद मेघराज ने मुझे बताया है। उसने बताया कि इस-इस तरह से रूपलाल ने तुम्हें धोखा दिया और अब तुम उमादत्त की कैद में हो और मैंने (मेघराज ने) विक्रम को बख्तावरसिंह बना रखा है। हमारा बनाया हुआ बख्तावरसिंह - यानी विक्रमसिंह यहां - यानी बख्तावर के घर पर मिलेगा। उसने मुझे विक्रमसिंह के लिए एक कागज लिखकर दिया और मुझसे कहा कि यह कागज मैं बख्तावरसिंह बने विक्रमसिंह को दे दूं। मगर जब यहां आया तो आप लोगों की बातें सुनीं। मैं समझ गया कि विक्रमसिंह एक झूठी कहानी गढ़कर तुम्हें धोखा देना चाहता है। अत: बीच में कूद पड़ा, क्योंकि मुझे तुमसे अधिक लाभ है।''

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