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ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 2

देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

इस तरह - बलवंत को उन्हें सौंपकर काला चोर मायादेवी के पीछे लग गया। उसने मायादेवी की एक-एक हरकत नोट की। एक व्यापारी का भेष बनाकर उसके सामने ही मायादेवी दलीपसिंह के दरबार में पहुंची। वहां उसने दलीपसिह के कान कैसे भरे, यह आप पहले भाग में पढ़ चुके हैं। आपको याद होगा कि अन्त में वहां एक नकाबपोश, पहुंचा - वह यही काला चोर था।

काले चोर का नाम सुनते ही मायादेवी के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं।

''तुम कौन हो और हमारे दरबार में होने वाले कौन-से अनर्थ की बात करते हो?'' दलीपसिंह ने काले चोर को घूरते हुए कहा।  - 'हम बता चुके हैं कि हमारा नाम काला चोर है।'' नकाबपोश बोला- ''और दलीपसिंह के दरबार में अनर्थ ये हो रहा है कि दुश्मन के एक ऐयार के सिखाए में आकर महाराज अपने ऐयार बलवंतसिंह का  चेहरा धुलवाने से पहले क्यों न इस व्यापारी का चेहरा धुलवाया जाए - जो अपना नाम बनारसीदास बताता है?''

''पहले हम ये जानना चाहते हैं कि तुम कौन हो?'' दलीपसिंह ने कहा।

''अगर हमें ही जानना चाहते हो तो सुनो।'' काला चोर बोला- ''हम तुम्हारे ऐयार नजारासिंह हैं।'' कहते हुए काले चोर ने  अपना नकाब उतार दिया। दलीपसिंह के साथ-साथ सभी चौक पड़े,  क्योंकि वह वास्तव में दलीपसिंह का ऐयार नजारासिंह ही था। कोई कुछ बोल भी नहीं पाया था कि अचानक दरबार में बलवतसिंह ने प्रवेश किया और बोला- ''ठहरिए महाराज!'' सबने घूमकर देखा तो बलवंतसिंह को देखकर चौक पड़े। - ''तुम?'' चौंककर दलीपसिंह बोले - वे कभी नये आने वाले, बलवंतसिंह को देखते तो कभी उस बलवंतसिंह को, जो पहले से ही, दरवार में मौजूद था। अभी कोई कुछ निर्णय नहीं कर पाया था कि नया आने वाला बलवंतसिंह बोला- ''मैं असली बलवंतसिंह हूं महाराज।''

''लेकिन...?''

''यह समय बातों में खोने का नहीं है महाराज।'' नया बलवंतसिंह बोला-- ''इस समय दरबार में काफी तगड़ी ऐयारी चल रही है। दरबार में पहले से मौजूद बलवंत, यह व्यापारी और खुद को नजारासिंह कहने वाला ये आदमी, सभी दुश्मन के ऐयार हैं। इन सबों को गिरफ्तार कर लिया जाए। ये सब अपने-अपने उद्देश्य से यहां दरबार में आए हैं।''

 

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