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देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

मोमबत्ती के प्रकाश में वह ऊपर से आए हुए पत्थर को ढूंढ़ने लगा। जल्दी ही उसे एक छोटा-सा पत्थर मिल गया - जिसके चारों ओर एक कागज लिपटा हुआ था। अब शायद पाठक समझ गए होंगे कि ऊपर से उस आदमी ने कागज को इस छोटे पत्थर में लपेटकर फेंका था। नलकू ने वह कागज में लिपटा पत्थर उठाया और अपने बटुए में डाल लिया। मोमबत्ती बुझा दी और वह एक तरफ बढ़ गया। अभी वह अधिक दूर नहीं बढ़ पाया था कि अचानक अंधेरे में से किसी आदमी ने झपटकर उसे दबोच लिया।

नलकू ने चीखना चाहा, मगर असफल रहा, क्योंकि उसे दबोचने वाले का हाथ उसके मुंह पर था। नलकू यह भी न जानता था कि उसके हाथ में बेहोशी की बुकनी भी थी।

वह बेहोश हो गया - वह आदमी, जिसने नलकू पर हमला किया था, अंधेरा होने के बावजूद भी अपने चेहरे को नकाब से ढके हुए था। उसने जल्दी से नलकू की गठरी बनाई और चुपचाप एक तरफ को चल दिया। इस समय वह एक डेरे की ओर बढ़ रहा था। कुछ ही देर बाद वह उस डेरे में पहुंच गया। डेरे के अंदर एक चिराग जल रहा था और धरती पर बिछी दरी पर केवल एक आदमी बैठा था और यह आदमी सुरेंद्रसिंह का ऐयार गोपालदास था। उसने पूछा-

''ये तुम किसे बांध लाए शेरसिंह?''

नकाबपोश जो वास्तव में शेरसिंह ही था ने अपना नकाब उतार दिया और बोला- ''ये चंद्रदत्त का ऐयार नलकू है!''

''ये तुम्हारे हाथ कहां से लग गया?''

''मैं अपने काम से गया था।'' शेरसिंह ने कहा- ''मैंने सोचा था कि दीवार के सहारे-सहारे खुद को अंधेरे में छुपाकर वहां तक पहुंचूं ताकि चंद्रदत्त के सैनिकों की नजरों से बच सकूं। तुम्हें तो मालूम है कि बाहर कितना अंधेरा है। अपने आसपास का आदमी नजर नहीं आता। मैं अंधेरे में ही था कि किसी पत्थर के धरती पर गिरने की आवाज ने मुझे चौंका दिया। मैं एकदम सांस रोककर दीवार के सहारे खड़ा हो गया। कुछ देर बाद देखता हूं कि इसने (नलकू ने) मोमबत्ती का प्रकाश करके धरती पर कुछ ढूंढ़ने का प्रयास किया, अन्त में इसने कागज में लिपटा एक पत्थर उठाकर बटुए में डाला।''

''कागज में लिपटा पत्थर!''

''हां, इस कागज में किसी ने कुछ लिखा है।'' शेरसिंह ने बताया- ''मुझे लगता है कि राजधानी के अन्दर का कोई आदमी राजा चंद्रदत्त से मिला हुआ है। वह अन्दर की खबर हर रात को इसी तरह चंद्रदत्त तक पहुंचाता होगा। नलकू उस स्थान पर खड़ा हुआ इस पत्थर के गिरने का इन्तजार कर रहा था। निश्चय ही यह पत्थर ऊपर बारादरी में से किसी ने फेंका है। वह गद्दार हर रात को सन्देश इसी प्रकार बाहर चंद्रदत्त तक पहुंचाता है।''

''लेकिन वह गद्दार कौन हौ सकता है ?''

''कोई भी हो, लेकिन गद्दार है जरूर!'' शेरसिंह दृढ़ स्वर में बोला- ''इसके बटुए से निकालकर वह कागज पढ़ते हैं - शायद कुछ पता लगे।''

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