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देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

लिखा था-

आदरणीय सुरेंद्रसिंह जी, प्रणाम,

मुझे आपका कल रात भेजा गया खत मिल गया है - मुझे खुशी है कि आपने मेरा प्रस्ताव मान लिया है - अपने खत में मैंने आपके सामने प्रस्ताव रखा था कि इस समय आपकी पराजय निश्चित है। आप अब इस तरह अधिक दिनों तक फाटक बन्द करके राजधानी में नहीं रह सकते, क्योंकि मैं जानता था कि राजधानी के अन्दर केवल चालीस दिन के लिए ही खाने की सामग्री थी और अब वह समाप्ति पर होगी। अब या तो विवश होकर आप राजधानी का फाटक खोलकर युद्ध करेंगे अथवा भूखे मरेंगे। दोनों ही तरह से आपकी पराजय निश्चित है। मैंने लिखा था कि अगर आप इस मुसीबत से बचना चाहते हैं तो केवल यही तरकीब है कि कांता से मेरा विवाह कर दें। चंद्रदत्त की सेना चंद्रदत्त के कहने से नहीं, बल्कि मेरे कहने से चलती है। मैं जानता हूं कि कांता राजकुमारी है, अत: आप उसका विवाह किसी राजकुमार अथवा राजा से ही करना चाहते होंगे। आप यकीन रखिए कि मैं जब चाहूं सेना के साथ बगावत करके राजा चंद्रदत्त के सारे खानदान को खत्म करके खुद राजा बन सकता हूं। मुझे इस बात की खुशी है कि आप मेरे पहले पत्र के प्रस्ताव से सहमत हो गए हैं, यानी आप मेरे साथ कांता का विवाह करने के लिए तैयार हो गए हैं। आप निश्चिंत रहिए, ऐसी कोई ताकत नहीं है जो आपका बाल भी बांका कर सके। सारी सेना मेरे कहने में है। अन्दर-ही-अन्दर मैं सेना को चंद्रदत्त के खिलाफ भड़का चुका हूं। अपने कल के पत्र में मैं पूरी तरकीब लिखूंगा, उसी के अनुसार काम करें। आप क्षत्रिय हैं और आपने मुझे वचन दिया है कि कांता का विवाह मुझसे करेंगे, अत: क्षत्रिय धर्म से गिरें नहीं।

अगर आप अपने वचन से फिरे तो उसका अंजाम भी आप जानते हैं। कांता से विवाह करके मैं राजगढ़ का राजा बन जाऊंगा, इस तरह से भरतपुर के साथ-साथ राजगढ़ भी आपका ही राज्य होगा।

आपका भावी दामाद - जोरावरसिंह।

इस पत्र को पढ़कर तो राजा चंद्रदत्त की अजीब हालत हो गई। ऐसा लगता था कि जैसे वे अभी फूट-फूटकर रो पड़ेंगे। उन्होंने पुन: हरनामसिंह वाला खत उठाया और शेष पत्र पढ़ने लगे, लिखा था-

आशा है मेरे ये शब्द आप इस पत्र को पढ़ने के बाद पढ़ रहे हैं, जो जोरावरसिंह ने सुरेंद्र भैया को लिखा है। इस पत्र को पढ़कर आपने अन्दाजा लगा लिया होगा कि जोरावरसिंह और सुरेंद्रसिंह के बीच आजकल किस तरह की बातें चल रही हैं। इन लोगों के बीच फैसला हो चुका है। वैसे तो शायद सुरेंद्र भैया कांता की शादी जोरावर से करने के लिए तैयार होते अथवा नहीं होते, किन्तु ये पत्र बताता है कि परिस्थितियों से मजबूर होकर वे ऐसा करने के लिए तैयार हो गए हैं। जहां तक मेरा अपना ख्याल है, वह यही है कि जोरावरसिंह ने सुरेंद्र भैया को ठीक ही लिखा है। मुझे भी ऐसा ही लगता है कि आप अपने दारोगा पर जरूरत से ज्यादा विश्वास करते हैं। सारी सेना उसी के कब्जे में है। वास्तव में उसने जो कुछ सुरेंद्र भैया को लिखकर भेजा है, उसे वह आसानी से पूरा कर सकता है। पता नहीं सेना के साथ-साथ आपके कौन-कौन से ऐयार जोरावरसिंह से मिले हुए हों। मेरे विचार से तो इस समय यही उचित होगा कि आप यह प्रकट न करें कि आप जोरावरसिंह और सुरेंद्रसिंह की बातों से वाकिफ हैं। आप जोरावरसिंह से इस बात का जिक्र करने की भी कोशिश मत करना, वर्ना हम लोगों का अन्त निश्चित है। जब सारी सेना ही उसके साथ है तो आप कर ही क्या सकेंगे? इससे अच्छा ये है कि इस समय जोरावरसिंह को छेड़ा ही नहीं जाए। मेरे ख्याल से उसे इस समय छेड़ना अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी मारना है। मुझे कितना दुःख है कि मैं भरतपुर का राजा बनते-बनते रह गया हूं। कुंवर शंकरदत्त की इच्छा भी इस समय पूर्ण नहीं हो सकेगी, किन्तु हमें निराश नहीं होना चाहिए, बल्कि इस समय बुद्धि से काम लेना चाहिए। मेरी राय से आज सुबह होते ही यह घोषणा कर दें कि आपने भरतपुर जीतने और शंकरदत्त का विवाह कांता से करने का विचार त्याग दिया है, अत: सुबह ही बिना कोई कारण बताए कूच का हुक्म दे दें - इस तरह जोरावरसिंह और सुरेंद्र भैया की साजिश बीच में ही असफल हो जाएगी और आप अपने राज्य राजगढ़ में पहुंचकर अपने ढंग से जोरावर से निपट सकते हैं। उसके बाद आप सेना को अपने वश में करके कुछ दिनों बाद पुन: पूर्ण शक्ति से भरतपुर पर हमला कर सकते हें। इस तरह हमें अपना उद्देश्य पूरा करने में कुछ देर तो अवश्य लगेगी, मगर सफल हो जाएंगे। अगर हमने जल्दबाजी की तो न केवल असफल होंगे, बल्कि अपनी जान से भी हाथ धो बैठेंगे। मेरी राय तो यही है, अव उसे मानना न मानना आपके अख्तियार में है।

आपका दोस्त - हरनामसिंह।

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