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ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

अध्याय १२

भगवान् शिव की श्रेष्ठता तथा उनके पूजन की अनिवार्य आवश्यकता का प्रतिपादन

नारदजी बोले- ब्रह्मन्! प्रजापते! आप धन्य हैं; क्योंकि आप की बुद्धि भगवान् शिव में लगी हुई है। विधे! आप पुन: इसी विषय का सम्यक् प्रकार से विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिये।

ब्रह्माजी ने कहा- तात! एक समय की बात है मैं सब ओर से ऋषियों तथा देवताओं को बुलाकर उन सबको क्षीरसागर के तटपर ले गया, जहाँ सब का हित-साधन करनेवाले भगवान् विष्णु निवास करते हैं। वहाँ देवताओं के पूछने पर भगवान् विष्णु ने सबके लिये शिवपूजन की ही श्रेष्ठता बतलाकर यह कहा कि 'एक मुहूर्त या एक क्षण भी जो शिव का पूजन नहीं किया जाता, वही हानि है, वही महान् छिद्र है वही अंधापन है और वही मूर्खता है। जो भगवान् शिव की भक्ति में तत्पर हैं, जो मन से उन्हीं को प्रणाम और उन्हीं का चिन्तन करते हैं वे कभी दुःख के भागी नहीं होते।'

भवभक्तिपरा ये च भवप्रणतचेतसः।
भवसंस्मरणा ये च न ते दुःखस्य भाजना:।।

(शि० पु० रु० सृ० खं० १२। २१ )

जो महान् सौभाग्यशाली पुरुष मनोहर भवन, सुन्दर आभूषणों से विभूषित स्त्रियाँ, जितने से मन को संतोष हो उतना धन, पुत्र-पौत्र आदि संतति, आरोग्य, सुन्दर शरीर, अलौकिक प्रतिष्ठा, स्वर्गीय सुख, अन्त में मोक्षरूपी फल अथवा परमेश्वर शिव की भक्ति चाहते हैं वे पूर्वजन्मों के महान् पुण्यसे भगवान् सदाशिव की पूजा-अर्चा में प्रवृत्त होते हैं। जो पुरुष नित्य-भक्तिपरायण हो शिवलिंग की पूजा करता है उस को सफल सिद्धि प्राप्त होती है तथा वह पापों के चक्कर में नहीं पड़ता।

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