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शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

तात! मनु ने वैवाहिक विधि से अत्यन्त सुन्दरी शतरूपा का पाणिग्रहण किया और उससे वे मैधुनजनित सृष्टि उत्पन्न करने लगे। उन्होंने शतरूपा से प्रियव्रत और उत्तानपाद नामक दो पुत्र और तीन कन्याएँ उत्पन्न कीं। कन्याओं के नाम थे-आकूति, देवहूति और प्रसूति। मनु ने आकृति का विवाह प्रजापति रुचि के साथ किया। मझली पुत्री देवहूति कर्दम को ब्याह दी और उत्तानपाद की सबसे छोटी बहिन प्रसूति प्रजापति दक्ष को दे दी। उनकी संतान-परम्पराओं से समस्त चराचर जगत् व्याप्त है। रुचि से आकृति के गर्भ से यज्ञ और दक्षिणा नामक स्त्री-पुरुष का जोड़ा उत्पन्न हुआ। यज्ञ के दक्षिणा से बारह पुत्र हुए। मुने! कर्दम द्वारा देवहूति के गर्भ से बहुत-सी पुत्रियाँ उत्पन्न हुईं। दक्ष के प्रसूति से चौबीस कन्याएँ हुईं। उन में से श्रद्धा आदि तेरह कन्याओं का विवाह दक्ष ने धर्म के साथ कर दिया। मुनीश्वर! धर्म की उन पत्नियों के नाम सुनो-श्रद्धा, लक्ष्मी, इति, तुष्टि, पुष्टि, मेधा, क्रिया, बुद्धि, लज्जा, वसु, शान्ति, सिद्धि और कीर्ति - ये सब तेरह हैं। इनसे छोटी जो शेष ग्यारह सुलोचना कन्याएँ थीं, उनके नाम इस प्रकार हैं-ख्याति, सती, सम्भूति, स्मृति, प्रीति, क्षमा, संनति, अनसूया, ऊर्जा, स्वाहा तथा स्वधा। भृगु, शिव, मरीचि, अंगिरा मुनि, पुलस्त्य, पुलह, मुनिश्रेष्ठ क्रतु, अत्रि, वसिष्ठ, अग्नि और पितरों ने क्रमश: इन ख्याति आदि कन्याओं का पाणिग्रहण किया। भृगु आदि मुनिश्रेष्ठ साधक हैं। इनकी संतानों से चराचर प्राणियों सहित सारी त्रिलोकी भरी हुई है। इस प्रकार अम्बिकापति महादेवजी की आज्ञा से अपने पूर्वकर्मों के अनुसार बहुत-से प्राणी असंख्य श्रेष्ठ द्विजों के रूप में उत्पन्न हुए। 

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