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शिवसहस्रनाम

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2096

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भगवान शिव के सहस्त्रनाम...


अमृत: शाश्वत: शान्तो बाणहस्त: प्रतापवान्।
कमण्डलुधरो धन्वी अवाङ्मनसगोचर:।।४१।।

३२८ अमृत: शाश्वत: - सनातन अमृतस्वरूप, ३२१ शान्त: - शान्तिमय, ३३० बाणहस्त: प्रतापवान् -हाथ में बाण धारण करनेवाले प्रतापी वीर, ३३१ कमण्डलुधर: - कमण्डलु धारण करनेवाले, ३३२ धन्वी - पिनाकधारी, ३३३ अवाङ्मनसगोचर: - मन और वाणी के अविषय।।४१।।

अतीन्द्रियो महामाय: सर्वावासश्चतुष्पथ:।
कालयोगी महानादो महोत्साहो महाबल:।।४२।।

३३४ अतीन्द्रियो महामाय: - इन्द्रियातीत एवं महामायावी, ३३५ सर्वावास: - सबके वासस्थान, ३३६ चतुष्पथ: - चारों पुरुषार्थों की सिद्धि के एकमात्र मार्ग, ३३७ कालयोगी - प्रलय के समय सबको काल से संयुक्त करनेवाले, ३३८ महानाद: - गम्भीर शब्द करनेवाले अथवा अनाहत नादरूप, ३३९ महोत्साहो महाबल: - महान् उत्साह और बल से सम्पन्न।।४२।।

महाबुद्धिर्महावीर्यो भूतचारी पुरंदर:।
निशाचर: प्रेतचारी महाशक्तिर्महाद्युति:।।४३।।

३४० महाबुद्धि: - श्रेष्ठ बुद्धिवाले, ३४१ महावीर्य: - अनन्त पराक्रमी, ३४२ भूतचारी - भूतगणों के साथ विचरनेवाले, ३४३ पुरंदर: - त्रिपुरसंहारक, ३४४ निशाचर: - रात्रि में विचरण करनेवाले, ३४५ प्रेतचारी - प्रेतों के साथ भ्रमण करनेवाले, ३४६ महाशक्तिर्महाद्युति: - अनन्तशक्ति एवं श्रेष्ठ कान्ति से सम्पन्न।।४३।।

अनिर्देश्यवपु: श्रीमान् सर्वाचार्यमनोगति:।
बहुश्रुतोऽमहामायो नियतात्मा ध्रुवोऽध्रुव:।।४४।।

३४७ अनिर्देश्यवपु: - अनिर्वचनीय स्वरूपवाले, ३४८ श्रीमान् - ऐश्वर्यवान्, ३४९ सर्वाचार्यमनोगति: - सबके लिये अविचार्य मनोगतिवाले, ३५० बहुश्रुत: - बहुज्ञ अथवा सर्वज्ञ, ३५१ अमहामाय: - बड़ी-से-बड़ी माया भी जिन पर प्रभाव नहीं डाल सकती ऐसे, ३५२ नियतात्मा - मन को वश में रखनेवाले, ३५३ ध्रुवोऽध्रुव: - ध्रुव (नित्य कारण) और अध्रुव (अनित्यकार्य) रूप।।४४।।

ओजस्तेजोद्युतिधरो जनक: सर्वशासन:।
नृत्यप्रियो नित्यनृत्य: प्रकाशात्मा प्रकाशक:।।४५।।

३५४ ओजस्तेजोद्युतिधर: - ओज (प्राण और बल), तेज (शौर्य आदि गुण) तथा ज्ञान की दीप्ति को धारण करनेवाले, ३५५ जनक: - सबके उत्पादक, ३५६ सर्वशासन: - सबके शासक, ३५७ नृत्यप्रिय: - नृत्य के प्रेमी, ३५८ नित्यनृत्य: - प्रतिदिन ताण्डव नृत्य करनेवाले, ३५९ प्रकाशात्मा - प्रकाश स्वरूप, ३६० प्रकाशक: - सूर्य आदि को भी प्रकाश देनेवाले।।४५।।

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