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श्रीमद्भगवद्गीता भाग 1

महर्षि वेदव्यास

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :59
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 538

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यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान्।
कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे।।22।।

और जब तक कि मैं युद्धक्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इन विपक्षी योद्धाओं को भली प्रकार देख लूँ कि इस युद्ध रूप व्यापार में मुझे किन-किन के साथ युद्ध करना योग्य है तब तक उसे खड़ा रखिये।।22।।

अर्जुन कृष्ण से स्पष्ट कहता है कि रथ को तब तक खड़ा रखिए जब तक मैं भली-भाँति युद्धार्थियों को देख न लूँ। वह भी दुर्योधन की तरह दोनों ओर के योद्धाओं को एक बार युद्ध आरंभ होने से पहले देखना चाहता है। अर्जुन को अपनी शक्ति पर विश्वास है, और इस बात में भी पूरा विश्वास है कि वही सही ध्येय से युद्ध के लिए प्रस्तुत हुआ है। उसके, उसके भाइयों, द्रौपदी और अन्य परिजनों के साथ अन्याय हुआ है। कौरव भाइयों के साथ उसका युद्ध तो तार्किक है, परंतु वह जानना चाहता है कि इस युद्ध में कौरवों का साथ देने के लिए और कौन आया है? इसी प्रकार वह यह भी जानना चाहता है कि अन्याय के प्रति इस युद्ध में कौन उसकी ओर से युद्ध करने के लिए तत्पर है? उसे अपने और भीम, धृष्टुदुम्न, सात्यकि आदि के बाहुबल पर तो विश्वास है, पर एक परिपक्व योद्धा की तरह वह अपने विपक्षियों को भी ध्यान से देख और पहचान कर एक अंतिम आँकलन कर लेना चाहता है।

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