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श्रीमद्भगवद्गीता भाग 1

महर्षि वेदव्यास

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :59
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 538

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अत्र शूरा महेश्वासा भीमार्जुनसमा युधि।
युयुधानो विराटश्च दुपदश्च महारथ:।।4।।
धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्।
पुरूजित्कुन्तिभोजश्च शैव्यश्च नरपुंगव:।।5।।
युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः।।6।।

इस सेना में बड़े-बड़े धनुषों वाले तथा युद्ध में भीम और अर्जुन के समान शूरवीर सात्यकि और विराट तथा महारथी राजा दुपद, धृष्टकेतु और चेकितान तथा बलवान् काशिराज, पुरुजित्, कुन्तिभोज और मनुष्यों में श्रेष्ठ शैब्य, पराक्रमी युधामन्यु तथा बलवान् उत्तमौजा, सुभद्रापुत्र अभिमन्यु एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्र - ये सभी महारथी हैं।।4-6।।

दुर्योधन पाण्डव पक्ष के प्रसिद्ध वीरों का एक-एक करके वर्णन करता है, जैसे आज के समय में पाश्चात्य जगत् में अतिनायकों (सुपर मैन, स्पाइडर मैंन, ग्रीन लैण्टर्न आदि) का चित्र कथाओं में वर्णन किया जाता है। महाभारत के युद्ध में लड़ने वाले योद्धाओँ ने किसी एक पक्ष का चुनाव किया था। लगभग उसी तरह जैसे आज कल जनतंत्र के चुनावों में लड़ने वाले नेता गण किसी एक पार्टी का चुनाव करते हैं। कभी-कभी वही नेतागण पार्टी बदल भी लेते हैं। ऐसा महाभारत के युद्ध में कुछ ही लोगों के साथ हुआ। एक बार पुनः पाठकों को ध्यान रखना होगा कि गीता महाभारत का ही अंश है, जिसकी कथा के बीच में ही अध्यात्म की चर्चा आरंभ हो जाती है, यहाँ महामुनि व्यास पाठकों को क्रमशः भौतिक से क्रमशः मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक विषय की ओर ले जा रहे हैं।

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