लोगों की राय

मूल्य रहित पुस्तकें >> श्रीमद्भगवद्गीता भाग 1

श्रीमद्भगवद्गीता भाग 1

महर्षि वेदव्यास

Download Book
प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :59
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 538

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

679 पाठक हैं

(यह पुस्तक वेबसाइट पर पढ़ने के लिए उपलब्ध है।)

अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम्।
पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम्।।10।।

भीष्मपितामह द्वारा रक्षित हमारी वह सेना सब प्रकार से अपरिमित है और भीम द्वारा रक्षित इन लोगों की यह सेना जीतने में सीमित और सुगम है।।10।।

पुनः दुर्योधन अपने दम्भ की पुनरावृत्ति करता है और शूरवीरों से सुसज्जित और विशेषकर भीष्म पितामह के संरक्षिता में युद्ध के लिए उद्दत अपनी सेना से भीम की संरक्षिता में लड़ने वाली पाण्डवों की सेना को हीन बताता है। दुर्योधन अपनी सेना को अपरिमित अर्थात् असंख्य और पाण्डवों की सेना को सीमित कहकर, उसे छोटी और जीतने योग्य कहता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book